मृत्यु के बाद

Last Updated 04 Feb 2019 07:24:24 AM IST

मरने के उपरांत नया जन्म मिलने से पूर्व जीवधारी को कुछ समय सूक्ष्म शरीरों में रहना पड़ता है। उनमें से जो अशांत होते हैं, उन्हें प्रेत और जो निर्मल होते हैं उन्हें पितर प्रकृति का निस्पृह उदारचेता, सहज सेवा, सहायता में रु चि लेते हुए देखा गया है।


श्रीराम शर्मा आचार्य

पंडितजी का मानना है कि मरणोपरांत की थकान दूर करने के उपरांत संचित संस्कारों के अनुरूप उन्हें धारण करने के लिए उपयुक्त वातावरण तलाशना पड़ता है, इसके लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है। वह समय भी सूक्ष्म शरीर में रहते हुए ही व्यतीत करना पड़ता है। ऐसी आत्माएं अपने मित्रों, शत्रुओं, परिवारीजनों एवं परिचितों के मध्य ही अपने अस्तित्व का परिचय देती रहती हैं। प्रेतों की अशांति संबद्ध लोगों को भी हैरान करती हैं। पितर वे होते हैं, जिनका जीवन सज्जनता के सतोगुणी वातावरण में बीता है। वे स्वभावत: सेवा व सहायता में रु चि लेते हैं। उनकी सीमित शक्ति अपनों-परायों को यथासंभव सहायता पहुंचाती रहती है, इसके लिए विशेष अनुरोध नहीं करना पड़ता। जरूरतमंदों की सहायता करना उनका सहज स्वभाव होता है। कितनी ही घटनाएं ऐसी सामने आती रहती हैं, जिनमें दैवी शक्ति ने कठिन समय में भारी सहायता की। बृहदारण्यक उपनिषद में मृत्यु व अन्य शरीर धारण करने का वर्णन मिलता है।

वर्तमान शरीर को छोड़कर अन्य शरीर प्राप्ति में कितना समय लगता है, इस विषय में उपनिषद कहते हैं कि कभी-कभी तो बहुत ही कम समय लगता है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। उपनिषद के अनुसार मृत्यु के बाद दूसरा शरीर प्राप्त होने में इतना ही समय लगता है जितना कि एक कीड़ा एक तिनके से दूसरे तिनके पर जाता है अर्थात दूसरा शरीर प्राप्त होने में कुछ ही क्षण लगते हैं कुछ ही क्षणों में आत्मा दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाती है। हालांकि यह व्यक्ति के चित्त की दशा पर निर्भर करता है। अर्थात जब मनुष्य अंत समय में निर्बलता से मूíछत-सा हो जाता है तब आत्मा की चेतना शक्ति जो समस्त बाहर और भीतर की इंद्रियों में फैली हुई रहती है, उसे सिकोड़ती हुई हृदय में पहुंचती है, जहां वह उसकी समस्त शक्ति इकट्ठी हो जाती है। इन शक्तियों के सिकोड़ लेने का इंद्रियों पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसका वर्णन करते हैं कि जब आंख से वह चेतनामय शक्ति जिसे यहां पर चाक्षुष पुरु ष कहा है, वह निकल जाती तब आंखें ज्योतिरहित हो जाती है और मनुष्य उस मृत्यु समय किसी को देखने में अयोग्य हो जाता है।



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