धर्म
पहले समझें कि धर्म को जिलाता कौन है? क्योंकि अगर हम जिलाने वाले को पहचान लें, तो मारने वाले को भी पहचान जाएंगे. धर्म को जिलाते हैं, इस जगत में जीवंत करते हैं वे लोग जो धर्म के अनुभव से गुजरते हैं.
![]() धर्माचार्य आचार्य रजनीश ओशो |
बुद्ध, जीसस, कृष्ण, मोहम्मद, जलालुद्दीन, नानक, कबीर-ये धर्म के मृत प्राणों में पुनरु ज्जीवन फूंक देने वाले लोग हैं. बुद्ध के जीवन में कहानी आती है-‘कहानी’ ही कहूंगा, क्योंकि मैं नहीं मानता कि यह कोई तथ्य है; मगर प्रतीकात्मक है.
सत्य है-तथ्य नहीं. कहानी कहती है कि बुद्ध जब निकलते हैं, अगर किसी ठूंठ के पास से निकल जाएं तो ठूंठ हरा हो जाता है. और किसी बांझ वृक्ष के पास से निकल जाएं, जिसमें फल न लगते हों, तो फल लग जाते हैं. असमय में भी फूल खिल जाते हैं. ऐसा होता हो, न होता हो!! लेकिन प्रतीकात्मक हैं ये बातें. बुद्धों की मौजूदगी में सदियों से निष्प्राण पड़े धर्म में पुन: प्राण की प्रतिष्ठा होती है. पण्डित और पुरोहित का व्यवसाय क्या है! उनका व्यवसाय है कि बुद्धों के वचनों को दोहराते रहें; बुद्धों की साख का मजा लूटते रहें.
बुद्धों को लगे सूली, बुद्धों को मिले जहर, बुद्धों पर पड़े पत्थर-और पण्डितों पर, पुजारियों पर, पोपों पर फूलों की वष्रा! अभी तुम देखते हो-पोप किसी देश में जाते हैं, तो इतने लोग देखने को इकट्ठे होते हैं कि अभी ब्राजील में सात आदमी भीड़ में दबकर मर गए; और जीसस को सूली लगी, तब सात आदमी भी जीसस को प्रेम करने वाले भीड़ में इकट्ठे नहीं थे. सात यहां दबकर मर गए-साधारण आदमी को देखने के लिए जिसमें कुछ भी नहीं है!
जिसके पोप होने के पहले कोई एक आदमी देखने न आता. अभी साल भर पहले जब यह आदमी पोप नहीं हुआ था, किसी को नाम का भी पता नहीं था! किसी को प्रयोजन भी नहीं था. और ऐसा इस आदमी में कुछ भी नहीं है. लेकिन लाखों लोग इकट्ठे होंगे. मगर धर्म को कौन मारता है?
नास्तिक तो नहीं मार सकते. नास्तिक की क्या बिसात! लेकिन झूठे आस्तिक मार डालते हैं. मंदिर उनके, मस्जिद उनके, गिरजे उनके, गुरु द्वारे उनके. झूठे धार्मिंक की बड़ी सत्ता है. हिंदू धर्म ने हिंदुओं को मार डाला है. मुसलमान धर्म ने मुसलमानों को. जैन धर्म ने जैनों को. बौद्ध धर्म ने बौद्धों को. ईसाई धर्म ने ईसाइयों को मार डाला है. यह पृथ्वी मरे हुए लोगों से भरी है. इसमें मुरदों के अलग-अलग मरघट हैं. कोई हिंदुओं का, कोई मुसलमानों का, कोई जैनों का-वह बात और-मगर सब मरघट हैं.
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