खुशी
क्याआप जानते हैं, जब हम केवल अपने बारे में सोचते हैं तब हमारा जीवन सिकुड़ने लगता है, लेकिन जब हम सारे समाज के बारे में सोचते हैं, सबके लिए, तब और ज्यादा खुशी आती है.
श्री श्री रविशंकर |
हां, इसमें कठिनाइयां भी हैं. सब खुश रहना चाहते हैं, ठीक? क्या यहां कोई ऐसा है जो खुश नहीं रहना चाहता? हर इंसान, हर पशु-पक्षी, हर जीव खुश रहना चाहता है.
अब खुश रहने का क्या तरीका है? यह खुशियां बांटने से होगा. जब आप खुशियां बांटते हो तब वह बढ़ती हैं. जब आप उन्हें बांटते नहीं, सिर्फ खुद तक ही रखते हो, वह धीरे-धीरे कम होनी शुरू हो जाती हैं और फिर खत्म हो जाती हैं. यह बात लोग नहीं जानते, वह खुश होना चाहते हैं.
लेकिन वह कैसे सबके साथ बांटना है, कैसे अपने परिवार में सबको शामिल करना है, यह नहीं जानते और यही जीवन जीने की कला है. यह लोगों को खुशियां बांटना और सबको अपने परिवार में शामिल करना सिखाती है. तो क्या हम सब ये करने के लिए वचनबद्ध हैं? संस्कृत में एक पुरानी कहावत है,‘असली पूजा, ईश्वर की असली प्रार्थना दूसरों को खुशी देना है.
इसमें बेशक कठिनाइयां भी हैं. हर एक व्यक्ति की कुछ न कुछ परेशानी है, कुछ कठिनाई हैं. लोगों को उनकी नौकरी, पति-पत्नी, बच्चे, भाई-बहन, माता-पिता, परिवार, स्वास्थ्य, आदि की चिंता है, परेशानी है. यह सब मुश्किलें हमारे आस-पास हैं, ठीक?
किसी के भी जीवन में ऐसा कोई वक्त नहीं रहा होगा, जब उसके सामने कोई मुश्किल, कोई चिंता नहीं होगी, अपनी नहीं होगी तो अपने मित्र की होगी, अगर मित्र की नहीं तो किसी रिश्तेदार की होगी, और अगर किसी की नहीं होगी तो सारे संसार की होगी. सबको किसी न किसी बात की चिंता है, ठीक?
अब अगर सब बातों की चिंता की बजाए हम आगे बढ़ें, अपनी बाहें पसारें, अपने पंख खोलें और एक प्रसन्न विश्व बनाने के लिए कार्य शुरू करें, मैं कहता हूं, हम सब सफल होंगे, समझ गए? हम इस दुनिया में रोते हुए आएं लेकिन हम यहां से रोते हुए नहीं जाना चाहते. कम से कम जब हम इस दुनिया से जाएं तब मुस्कुरा रहे हों हां, शरीर बीमार होता है, बीमारी तो इस ब्रह्मांड का सदियों से एक हिस्सा है.
शरीर का ध्यान रखो, इस शरीर को भोजन, घर और जो भी इसकी जरूरत है, सब प्रदान करो लेकिन बैठ कर इसके बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है, आप समझ रहे हैं? चिंता बेकार है.
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