असफल प्रेम
जार्ज बर्नाड शॉ ने कहा है, दुनिया में दो ही दुख हैं-एक तुम जो चाहो वह न मिले और दूसरा तुम जो चाहो वह मिल जाए.
आचार्या रजनीश ओशो |
और दूसरा दुख मैं कहता हूं कि पहले से बड़ा है क्योंकि मजनूं को लैला न मिले तो भी विचार में तो सोचता ही रहता है कि काश, मिल जाती! काश मिल जाती, तो कैसा सुख होता! तो उड़ता आकाश में, कि करता सवारी बादलों की, चांद-तारों से बातें, खिलता कमल के फूलों की भांति. नहीं मिल पाया इसलिए दुखी हूं. मजनूं को मैं कहूंगा, जरा उनसे पूछो जिनको लैला मिल गई है. वे छाती पीट रहे हैं. सोच रहे हैं कि मजनूं धन्यभागी था, सौभाग्यशाली था. कम से कम बेचारा भ्रम में तो रहा. हमारा भ्रम भी टूट गया. जिनके प्रेम सफल हो गए हैं, उनके प्रेम भी असफल हो जाते हैं.
इस संसार में कोई भी चीज सफल हो ही नहीं सकती. जैसे ही तुमने सुना ‘प्रेम’, कि तुमने जितनी फिल्में देखी हैं,, उनका सबका सार आ गया. सबका निचोड़, इत्र. मैं जिस प्रेम की बात कर रहा हूं वह कुछ और. मीरा ने किया, कबीर ने किया, नानक ने किया, जगजीवन ने किया. तुम्हारी फिल्मों वाला का प्रेम नहीं, नाटक नहीं. और जिन्होंने यह प्रेम किया उन सबने यही कहा कि वहां हार नहीं है, वहां जीत ही जीत है. दुख नहीं है, वहां आनंद की पर्त पर पर्त खुलती चली जाती है.
और अगर तुम इस प्रेम को न जान पाए तो जानना, जिंदगी व्यर्थ गई. मरते वक्त ऐसा न कहना पड़े तुम्हें कि कितनी दूर से आए थे. दूर से आए थे साकी सुनकर मैखाने को हम-मधुशाला की खबर सुनकर कहां से तुम्हारा आना हुआ, जरा सोचो तो! कितनी दूर की यात्रा से तुम आए हो. पर तरसते ही चले अफसोस पैमाने को हम-यहां एक घूंट भी न मिला. मरते वक्त अधिक लोगों की आंखों में यही भाव होता है. तरसते हुए जाते हैं.
हां, कभी-कभी ऐसा घटता है कि कोई भक्त, कोई प्रेमी परमात्मा का तरसता हुआ नहीं जाता, लबालब जाता है. मैं किसी और प्रेम की बात कर रहा हूं. आंख खोलकर एक प्रेम होता है, वह रूप से है. आंख बंद करके एक प्रेम होता है, व अरूप से है. कुछ पा लेने की इच्छा से एक प्रेम होता है वह लोभ है, लिप्सा है. अपने को समर्पित कर देने का एक प्रेम होता है, वही भक्ति है. तुम्हारा प्रेम तो शोषण है. पुरु ष स्त्री को शोषित करना चाहता है, स्त्री पुरु ष को. इसीलिए तो स्त्री-पुरु षों के बीच सतत झगड़ा बना रहता है. पति-पत्नी लड़ते रहते हैं. कलह का शात वातावरण रहता है.
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