सत्प्रवृत्ति

Last Updated 30 Aug 2016 12:47:57 AM IST

कांच को हथौड़े से तोड़ा जाए तो वह छर- छर होकर बिखर तो सकता है, पर सही जगह से इच्छित स्तर के टुकड़ों में विभाजित न हो सकेगा.


श्रीराम शर्मा आचार्य

चट्टानों में छेद करना हो, तो सिर्फ  हीरे की नोंक वाला बरमा ही काम आता है. पहाड़ में सुरंगें निकालने के लिए डायनामाइट की जरूरत पड़ती है. कुदालों से खोदते-तोड़ते रहने पर तो सफलता संदिग्ध ही बनी रहेगी. वर्तमान में संव्याप्त असंख्य अवांछनीयताओं से जूझने में प्रचलित उपाय पर्याप्त नहीं हैं. दरिद्रता को सभी संकटों की एकमात्र जड़ बताने से तो बात नहीं बनती. समाधान तो तब हो, जब सर्वसाधारण को मनचाही संपदाओं से सराबोर कर देने का कोई सीधा मार्ग बन सके. यह तो संभव नहीं दिखता.

इसी प्रकार यह भी दुष्कर प्रतीत होता है कि उच्च शिक्षित चतुर कहलाने वाला व्यक्ति अपनी विशिष्टताओं का दुरुपयोग न करेगा और उपार्जित योग्यता का लाभ सर्वसाधारण तक पहुंचा सकेगा. प्रपंचों से भरी कठिनाइयां खड़ी न करेगा. संपदा के द्वारा मिलने वाली सुविधाओं से कोई इनकार नहीं कर सकता, पर यह विश्वास कर सकना कठिन है कि जो पाया गया, उसका सदुपयोग ही बन पड़ेगा. उसके कारण र्दुव्‍यसनों का, आतंकवादी अनाचार का जमघट तो नहीं लग जाएगा.

वर्तमान कठिनाइयों के निराकरण के लिए आमतौर से सम्पदा, सत्ता और प्रतिभा के सहारे ही निराकरण की आशा की जाती है.

इन्हीं तीनों का मुंह जोहा जाता है. इतने पर भी इनके द्वारा जो पिछले दिनों बन पड़ा है, उसका लेखा-जोखा लेने पर निराशा ही हाथ लगती है. प्रतीत होता है कि जब भी, जहां भी वह अतिरिक्त मात्रा में संचित होती हैं, वहीं एक प्रकार का उन्माद उत्पन्न कर देती हैं. उस अधपगलाई मनोदशा के लोग सुविधा संवर्धन के नाम पर उद्धत आचरण करने पर उतारू हो जाते हैं और मनमानी करने लगते हैं.

अपने-अपनों के लाभ के लिए ही उनकी उपलब्धियां खपती रहती हैं. प्रदर्शन के रूप में ही यदाकदा उनका उपयोग ऐसे कार्यों में लग पाता है, जिससे सत्प्रवृत्ति संवर्धन में कदाचित कुछ योगदान मिल सके. वैभव भी अन्य नशे की तरह कम विक्षिप्तता उत्पन्न नहीं करता, उसकी खुमारी में अधिकाधिक उसका संचय और अपव्यय के उद्धत आचरण ही बन पड़ते हैं. ऐसी दशा में इस निश्चय पर पहुंचना अति कठिन हो जाता है कि उपर्युक्त त्रिविध समर्थताएं यदि बढ़ाने-जुटाने को लक्ष्य मानकर चला जाए तो प्रस्तुत विपन्नताओं से छुटकारा मिल सकेगा.



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