दैवी गुण
आजकल टेलीविजन धारावाहिकों में जिस तरह से महादेव, पार्वती, जलंधर जैसे चरित्रों का चित्रण किया जा रहा है, मुझे यह कदापि उचित नहीं लगता.
आध्यमिक गुरु श्रीश्री रविशंकर (फाइल फोटो) |
वे पार्वती को, जो भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं और ईश्वरीय शक्ति हैं, एक ऐसी महिला के रूप में दर्शाते हैं, जो अक्सर आवेश में आ जाती है, बात-बात पर परेशान हो जाती है और चीखती-चिल्लाती रहती है. ये सब दैवी गुण नहीं हैं. धैर्य, प्रसन्नता, सहजता और पूर्व ज्ञान - ये सब दैवी गुण हैं, जिन्हें हमें दिखाना चाहिए.
ब्रह्माण्ड में दैवी और राक्षसी दोनों प्रकार की शक्तियां विद्यमान हैं. पर ये धारावाहिक इस तथ्य की अवहेलना करते हैं. जो दैवी चरित्र हैं, उन्हें ये मानव की तरह प्रस्तुत करते हैं. और वो भी साधारण मानव की तरह नहीं, बल्कि ऐसे लोगों की तरह जिनका आचरण नकारात्मक और दयनीय होता है, और जो अक्सर भावना के आवेग में बह जाते हैं.
यह पहली बात है. दूसरी बात यह है कि हमें यह मान कर नहीं चलना चाहिए कि जो कहानी में दिखाया जा रहा है वही सच है. बल्कि हमें इन कथाओं के पीछे छुपे हुए सार को समझना होगा. नहीं तो ये मनोरंजन का एक और साधन मात्र बन कर रह जाएंगे. अब जैसे एक धारावाहिक में जलंधर नाम का एक असुर उभर कर आता है. अब जब कि इस जगत में कण कण में शिव हैं, तो यह राक्षसी शक्ति कहां से आ गई? जब इस ब्रह्माण्ड में शिव के अलावा कुछ भी नहीं है, तो यह असुर भी शिव से ही आया होगा. तो हमें ये समझना होगा कि जो भी असुरी शक्तियां वर्तमान में हैं या भूतकाल में प्रकट हुई थीं, वे ब्रह्म का ही हिस्सा हैं, उनसे अलग नहीं हैं.
क्रोध का उदय शांतिमय शिव तत्व से हुआ. पर क्रोध यहीं आकर रुक नहीं गया. भगवान शिव के क्रोध ने एक असुर का रूप धारण कर लिया, जो कि ईश्वर के क्रोध के विनाशकारी स्वरुप का प्रकटीकरण था. क्रोध की उत्पत्ति जैसे भी हुई हो, स्वयं ईश्वर से ही क्यूं न हुई हो, इसकी प्रतिक्रिया होगी और उस व्यक्ति के पास वापस आएगी.
इस जगत में हरेक चीज जहां से शुरू होती है वहां वापस आती है, और क्रोध इसका अपवाद नहीं है. भगवान शिव चैतन्य के शांत पक्ष का प्रतीक हैं, जबकि आदि शक्ति वह ऊर्जा हैं, जिसने समस्त विश्व की संरचना की है. आदि शक्ति तीन ऊर्जाओं या शक्तियों का संचय है - ज्ञान शक्ति, क्रिया शक्ति और इच्छा शक्ति.
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