ध्यान

Last Updated 28 Jun 2016 05:06:43 AM IST

ध्यान है पर्दा हटाने की कला. और यह पर्दा बाहर नहीं है, यह पर्दा तुम्हारे भीतर पड़ा है, तुम्हारे अंतस्तल पर पड़ा है.


आचार्य रजनीश ओशो

ध्यान है पर्दा हटाना. पर्दा बुना है विचारों से. विचार के ताने-बानों से पर्दा बुना है. अच्छे विचार, बुरे विचार, इनके ताने-बाने से पर्दा बुना है. जैसे तुम विचारों के पार झांकने लगो, या विचारों को ठहराने में सफल हो जाओ, या विचारों को हटाने में सफल हो जाओ, वैसे ही ध्यान घट जाएगा. निर्विचार दशा का नाम ध्यान है.

ध्यान का अर्थ है, ऐसी कोई संधि भीतर जब तुम तो हो, जगत तो है और दोनों के बीच में विचार का पर्दा नहीं है. कभी सूरज को उगते देखकर, कभी पूरे चांद को देखकर, कभी इन शांत वृक्षों को देखकर, कभी गुलमोहर के फूलों पर ध्यान करते हुए-तुम हो, गुलमोहर है, सजा दुल्हन ही तरह, और बीच में कोई विचार नहीं है.

इतना भी विचार नहीं कि यह गुलमोहर का वृक्ष है, इतना भी विचार नहीं; कि फूल सुंदर हैं, इतना भी विचार नहीं-शब्द उठ ही नहीं रहे हैं-अवाक, मौन, स्तब्ध तुम रह गए हो, उस घड़ी का नाम ध्यान है.

पहले तो क्षण-क्षण को होगा, कभी-कभी होगा, और जब तुम चाहोगे तब न होगा, जब होगा तब होगा. क्योंकि यह चाह की बात नहीं, चाह में तो विचार आ गया. यह तो कभी-कभी होगा. इसलिए ध्यान के संबंध में एक बात खयाल से पकड़ लेना, खूब गहरे पकड़ लेना-यह तुम्हारी चाहत से नहीं होता है. यह तो कभी-कभी, अनायास, किसी शांत क्षण में हो जाती है.

ध्यान के लिए हम इतना ही कर सकते हैं कि अपने को शिथिल करें, दौड़धाप से थोड़ी देर के लिए रु क जाएं. लेकर तकिया निकल गए, लेट गए लॉन पर, टिक गए वृक्ष के साथ, आंखें बंद कर ली ; पहुंच गए नदी तट पर, लेट गए रेत में, सुनने लगे नदी की कलकल. मंदिर-मस्जिद जाने को मैं कह ही नहीं रहा हूं, क्योंकि पत्थरों में कहां ध्यान!

तुम जीवंत प्रकृति को खोजो. इसलिए बुद्ध ने अपने शिष्यों को कहा, जंगल चले जाओ. वहां प्रकृति नाचती चारों तरफ. ध्यान को सीधा-सीधा नहीं किया जाता, बाधा न दो. इसीलिए तो मैं कहता हूं, नाचो, गाओ. नाचने और गाने में तुम लीन हो जाओ, अचानक तुम पाओगे, हवा के झोंके की तरह ध्यान आया, तुम्हें नहला गया, तुम्हारा रोआं-रोआं पुलकित कर गया, ताजा कर गया.



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