खेल
हम झूठ खेलों के बारे में एक अच्छी बात यह है कि यह समुदायों को बराबरी पर लाने का काम करते हैं.
जग्गी वासुदेव |
जो कोई भी अच्छा खेल दिखा रहा है, वह सबकी नजरों में आ जाता है और महत्त्वपूर्ण हो जाता है. कोई भी उसकी जाति, संप्रदाय या नस्ल की फिक्र नहीं करता. खेलों की सबसे बड़ी खूबी यह है, कि एक बार आप मैदान में पहुंच गए, तो फिर बस इतना ही महत्त्वपूर्ण रह जाता है कि आप कौन हैं और उस वक्त आप क्या कर रहे हैं. आपके पिता कौन थे और वह क्या करते थे, इसका कोई महत्त्व नहीं रह जाता.
यहां आपकी काबिलियत ही आपको पहचान दिलाती है, आप पहले से क्या करते रहे हैं, इसके कोई मायने नहीं होते. यह सवाल कोई नहीं पूछता कि महेंद्र सिंह धोनी की जाति क्या है, क्योंकि इसकी किसी को कोई परवाह नहीं है. धोनी मैदान पर क्या करते हैं, हमारे लिए उसी के मायने हैं. इस तरह से देखा जाए तो खेल समाज में बराबरी लाने का एक बड़ा जरिया है.
खेल खेलने और समुदाय के लोगों के बीच खेलों को लाने की प्रक्रिया समुदाय में मेलजोल का भाव पैदा करती है, जो तमाम उपदेशों से भी संभव नहीं है. नैतिक और धार्मिंक शिक्षाएं मेलजोल का वह भाव कभी पैदा नहीं कर सकतीं, जो खेल कर सकते हैं, क्योंकि खेल ही लोगों को एक साथ रहने और मिलकर एक दिशा में आगे बढ़ने के लिए स्वाभाविक तौर पर प्रेरित करते हैं.
जब आप किसी टीम के साथ खेलते हैं तो इससे आपके भीतर समावेश, यानी सबको साथ लेकर चलने का एक खास भाव पैदा होता है. अगर आप किसी टीम के सदस्य के तौर पर कोई खेल खेलना चाहते हैं तो तब तक आप अच्छा नहीं खेल सकते, जब तक अपनी टीम के सदस्यों के साथ एक खास तरह का जुड़ाव महसूस नहीं करेंगे. यही बात आपकी विरोधी टीम के साथ भी है. समावेश का यह भाव, टीम के दूसरे सदस्यों के प्रति अपनी पसंद या नापसंद से परे जाकर सभी को साथ लेकर चलने के लिए प्रेरित करता है.
इस तरह से सामूहिक रूप से एक साझे लक्ष्य की ओर बढ़ने जैसी बातें ही समाज निर्माण के लिए जरूरी बुनियादी तत्वों को पैदा करती हैं. अगर खेलों को शुरु आती स्तर पर इस्तेमाल किया जाए तो सामाजिक बदलाव, आर्थिक पुनर्द्धार और आध्यात्मिक विकास जैसी बातें समाज में आसानी से लाई जा सकती हैं. यह जरूरी नहीं है कि इसके लिए खेलों में प्रतियोगिता लाई जाए.
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