बुद्ध का मौन
बुद्ध को जब बोध प्राप्त हुआ, तो कहा जाता है कि वे एक सप्ताह तक मौन रहे.
श्री श्री रविशंकर |
उन्होंने एक भी शब्द नहीं बोला. पौराणिक कथाएं कहती हैं कि सभी देवता चिंता में पड़ गए. उनसे बोलने की याचना की. मौन समाप्त होने पर वे बोले, जो जानते हैं, वे मेरे कहने के बिना भी जानते हैं और जो नहीं जानते, वे मेरे कहने पर भी नहीं जानेंगे. जिन्होंने जीवन का अमृत ही नहीं चखा, उनसे बात करना व्यर्थ है, इसलिए मौन धारण किया था. जो बहुत ही आत्मीय और व्यक्तिगत हो उसे कैसे व्यक्त किया जा सकता है?
देवताओं ने उनसे कहा, जो आप कह रहे हैं वह सत्य है, परंतु उनके बारे में सोचें जिनको पूरी तरह से बोध भी नहीं हुआ है और पूरी तरह से अज्ञानी भी नहीं हैं. उनके लिए आपके थोड़े से शब्द भी प्रेरणादायक होंगे. तब आपके द्वारा बोला गया हर शब्द मौन का सृजन करेगा.
बुद्ध ने अकेले सत्य की तलाश शुरू की. इसके लिए उन्होंने अपना महल, पत्नी और बेटे को छोड़ दिया. उन्होंने वह सब कुछ किया, जो लोगों ने उन्हें बताया. इसके बाद ही वे चार सत्य जान पाए. पहला सत्य है कि दुनिया में दु:ख है. जीवन में सिर्फ दो संभावनाएं हैं- पहली यह कि अपने आसपास के संसार में औरों के दु:ख के अनुभव को देखकर समझ जाना. दूसरी यह कि स्वयं उसका अनुभव करके समझना कि संसार दु:ख है. दूसरा सत्य यह है कि दु:ख के लिए कोई कारण होता है. आप बिना किसी कारण सुखी रह सकते हैं,
परंतु दु:ख का कोई कारण अवश्य होता है. तीसरा सबसे महत्तवपूर्ण सत्य यह है कि दु:ख का निवारण संभव है. चौथा सत्य यह है कि दु:ख से बाहर निकलने के लिए एक पथ है.उस समय इतनी अधिक समृद्धि थी कि बुद्ध ने अपने मुख्य शिष्यों को भिक्षा का पात्र पकड़ा दिया और उनसे भिक्षा मांगने को कहा! उन्होनें राजाओं के शाही वस्त्र उतरवाकर उनके हाथ में भिक्षा का कटोरा दे दिया. यह इसलिए नहीं था कि उन्हें भोजन की आवश्यकता थी, परंतु वे उन्हें कुछ होने से कुछ नहीं होने के पाठ की सीख देना चाहते थे.
यह बताना चाहते थे कि आप कुछ नहीं हैं. आप इस विश्व में निर्थक हैं. जब उस समय के राजाओं और ज्ञानियों को भिक्षा मांगने को कहा गया, तो वे करु णा की मूर्ति बन गए. अपने सच्चे स्वभाव को देखें कि वह क्या है? वह शांति, करु णा, प्रेम, मित्रता, और आनंद है. मौन में इन सब का उदय होता है. दुख, पछतावे और कष्ट को मौन निगल लेता है और आनंद, करु णा और प्रेम को जन्म देता है.
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