स्वास्थ्य
स्वास्थ्य एक शारीरिक घटना ही नहीं है. यह मात्र इसका एक आयाम है, और वह भी ऊपरी आयाम,क्योंकि मौलिक रूप से देह तो मरणधर्मा है.
आचार्य रजनीश ओशो |
स्वस्थ या अस्वस्थ,यह क्षणभंगुर है. वास्तविक स्वास्थ्य को तो कहीं तुम्हारे भीतर घटित होना है, तुम्हारी अंतरात्मा में,तुम्हारी चेतना में, क्योंकि चेतना का कभी जन्म नहीं होता, मृत्यु नहीं होती. यह शात है.
चेतना में स्वस्थ होने का अर्थ है: प्रथम, जागरूक होना; द्वितीय: लयबद्ध होना; तृतीय: आनंदित होना; और चतुर्थ: करु णावान होना. यदि ये चार बातें पूरी हो जाती हैं तो व्यक्ति भीतर से स्वस्थ हुआ. और संन्यास इन चारों बातों को पूरा कर सकता है. यह तुम्हें और अधिक जागरूक करता है,क्योंकि सभी की ध्यान विधियां व तरीके हैं. तुम्हें और अधिक जागरूक करने के लिए ये पद्धतियां हैं तुम्हें आध्यात्मिक निद्रा से बाहर लाने के लिए. और नृत्य, गायन, उत्सव तुम्हें अधिक लयबद्ध बना सकते हैं. एक क्षण आता है जब नर्तक खो जाता है और केवल नृत्य शेष बचता है. उस विशिष्ट अंतराल में व्यक्ति लयबद्धता का अनुभव करता है.
जब गायक पूर्णत: खो जाता है और केवल गीत शेष बचता है. जब कोई केंद्र कार्य नहीं कर रहा होता और केवल गीत शेष रह जाता है,जब कोई केंद्र मैं की भांति कार्य नहीं कर रहा होता. मैं पूर्णत: अनुपस्थित होता है, और तुम एक प्रवाह में होते हो, तो वह बहती चेतना लयबद्धता होती है. जागरूक और लयबद्ध होना संभावना पैदा करता है-आनंद घटित होने की.
आनंद का अर्थ है परम सुख, अकथनीय; कोई भी शब्द इसके बारे में कुछ कहने में समर्थ नहीं. और जब व्यक्ति आनंद को उपलब्ध हो गया है, जब व्यक्ति ने परम सुख के शिखर को छू लिया हो, तो करु णा एक परिणाम के रूप में आती है, जब तुम्हें वह आनंद उपलब्ध हो जाता है तो तुम उसे बांटना चाहते हो; तुम बांटे बिना नहीं रह सकते, बांटना अपरिहार्य है. यह होने का तर्कयुक्त परिणाम है. यह छलकने लगता है; तुम्हें कुछ करना नहीं पड़ता. यह स्वयं ही घटने लगता है. यह चार स्वास्थ्य के चार स्तंभ हैं. इन्हें प्राप्त कर लें. यह हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है. हमें सिर्फ इसे प्राप्त करना है.
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