जागो
भारतीयो! रामकृष्ण की धरती, गंगा जमुना की गोदी में पले हिमालय की वेद भूमि वाले मानस पुत्र, पुत्रियो जागो.
आध्यात्मिक गुरु प्रणाम मीना ऊँ (फाइल फोटो) |
संपूर्ण विश्व का मार्गदर्शन करने वाले सूर्य-चंद्रवंशी तुम सदा ही आपसी फूट के कारण लड़ते-मरते रहे. अपनी शक्ति व अपनी अलौकिकता खोते रहे तभी अन्य जातियां तुम पर राज कर सकीं और सारी संस्कृति, सभ्यता और अलौकिक विद्याएं चुरा-चुरा कर बाहर ले जाकर लाभ उठाती रहीं.
आपसी फूट और राजाशक्ति के मद में चूर तुम सदा ही पथभ्रष्ट होते रहे हो. कितने गुरु व संत विवेकानंद तुम्हें रास्ता दिखाते रहे, तुम्हें अपनी पहचान बताते रहे. पर तुम अपने लिए बनाए गए स्वर्ग के मोह में अपने और अपने देश के लिए नरक के गड्ढे खोदते ही रहे हो.
राजमद में गद्दी के लोभ में सब मनीषियों को उनके ज्ञान को ताक पर रख दिया. गुंडाराज स्थापित कर दिया नतीजा तो भोगना ही होगा. इस भंवर से तभी निकल पाओगे, जब पूर्णरूप से अपने जमीर को जगा कर, आत्ममंथन कर, सत्य को अपनाओगे. सत्य योग्यता को सामने लाओगे, कर्मयोगी, सत्ययोगी, प्रेमयोगी मनीषियों का आदर कर उनके बताए मार्ग पर चलोगे. अपनी लोभी, दंभी, ईष्र्यालु, निर्मम बुद्धि का मार्गदर्शन छोड़कर सही वेद दर्शन वाले सुदर्शन व कर्मठ मानवों की शरण जाकर उनसे मार्गदर्शन लोगे.
कमी नहीं है ऐसे सपूतों की क्योंकि सत्य मानव कभी अपना मार्ग नहीं छोड़ता चाहे समाज उसे नकारे या स्वीकारे. इसकी रत्तीभर भी परवाह किए बगैर वह अपना कर्म, अपनी सत्यमयी प्रकृति व अंतश्चेतना के अनुसार करता ही रहता है. बिना पद या कुर्सी की लालसा के सत्य का हाथ थामे बढ़ता ही रहता है. यही उसकी सतत् साधना है; इस विास के साथ कि कुछ तुच्छ व्यक्तियों के हाथ में सत्ता आ भी गई तो क्या, अंतत: तो सत्य ही जीतेगा. सत्यमयी, आनन्दमयी व सर्वशक्तिमयी प्रकृति की कालगति रुकती नहीं. वह उत्तरोत्तर विकसित होती रहती है.
अपने उत्थान के सत्यमय, शक्तिमान माध्यम ढूंढ़कर तैयार कर लेती है तभी तो धरती रसातल को नहीं जाती, चाहे कितने ही राक्षसी प्रवृत्ति वाले माध्यम तैयार हो जाएं. सत्य माध्यमों का मार्गदर्शन, स्वयं प्रकृति या स्वयंभू प्रभु कुछ भी कह लो, वही ज्ञानमयी, ज्योतिर्मयी ज्योति करती है. जब ऐसे माध्यमों का मेल होगा, जो अब अवश्यम्भावी है, तभी कल्याण होगा.
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