प्रेम

Last Updated 28 May 2016 04:59:02 AM IST

मूल रूप से प्रेम का मतलब है कि कोई और आपसे कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो चुका है. यह दुखदायी भी हो सकता है, क्योंकि इससे आपके अस्तित्व को खतरा है.


जग्गी वासुदेव

जैसे ही आप किसी से कहते हैं, ‘मैं तुमसे प्रेम करता हूं’, आप अपनी पूरी आजादी खो देते हैं. आपके पास जो भी है, आप उसे खो देते हैं. जीवन में आप जो भी करना चाहते हैं, वह नहीं कर सकते. बहुत सारी अड़चनें हैं, लेकिन साथ ही यह आपको अपने अंदर खींचता चला जाता है. यह एक मीठा जहर है, बेहद मीठा जहर. यह खुद को मिटा देने वाली स्थिति है.

अगर आप खुद को नहीं मिटाते, तो आप कभी प्रेम को जान ही नहीं पाएंगे. आपके अंदर का कोई-न-कोई हिस्सा मरना ही चाहिए. आपके अंदर का वह हिस्सा, जो अभी तक ‘आप’ था, उसे मिटना होगा, जिससे कि कोई और चीज या इंसान उसकी जगह ले सके . अगर आप ऐसा नहीं होने देते, तो यह प्रेम नहीं है, बस हिसाब-किताब है, लेन-देन है.

जीवन में हमने कई तरह के संबंध बना रखे हैं, जैसे पारिवारिक संबंध, वैवाहिक संबंध, व्यापारिक संबंध, सामाजिक संबंध आदि. ये संबंध हमारे जीवन की बहुत सारी जरूरतों को पूरा करते हैं. ऐसा नहीं है कि इन संबंधों में प्रेम जताया नहीं जाता या होता ही नहीं. बिलकुल होता है. प्रेम तो आपके हर काम में झलकना चाहिए. आप हर काम प्रेमपूर्वक कर सकते हैं.

लेकिन जब प्रेम की बात हम एक आध्यात्मिक प्रक्रिया के रूप में करते हैं, तो इसे खुद को मिटा देन की प्रक्रिया की तरह देखते हैं. जब हम ‘मिटा देने’ की बात कहते हैं तो हो सकता है, यह नकारात्मक लगे.
जब आप प्रेम में डूब जाते हैं तो आपके सोचने का तरीका, आपके महसूस करने का तरीका, आपकी पसंद-नापसंद, आपका दशर्न, आपकी विचारधारा सब कुछ पिघल जाता है.

आपके भीतर ऐसा अपने आप होना चाहिए, और इसके लिए आप किसी और इंसान का इंतजार मत कीजिए कि वह आकर यह सब करे. इसे अपने लिए खुद कीजिए, क्योंकि प्रेम के लिए आपको किसी दूसरे इंसान की जरूरत नहीं है. आप बस यूं ही किसी से भी प्रेम कर सकते हैं. अगर आप बस किसी के भी प्रति हद से ज्यादा गहरा प्रेम पैदा कर लेते हैं, जो आप बिना किसी बाहरी चीज के भी कर सकते हैं, तो आप देखेंगे कि इस ‘मैं’ का विनाश अपने आप होता चला जाएगा.



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