सुख और दुख

Last Updated 29 Apr 2016 05:15:19 AM IST

प्रसिद्ध मनुष्य के अनुभव में, प्रतीति में सुख और दुख दो अनुभूतियां हैं-गहरी से गहरी.


आचार्य रजनीश ओशो

अस्तित्व का जो अनुभव है, अगर हम नाम को छोड़ दें, तो या तो सुख की भांति होता है, या दुख की भांति होता है. और सुख और दुख भी दो चीजें नहीं हैं. अगर हम नाम बिल्कुल छोड़ दें, तो सुख दुख का हिस्सा मालूम होगा और दुख सुख का हिस्सा मालूम होगा.

लेकिन हम हर चीज को नाम देकर चलते हैं. मेरे भीतर सुख की प्रतीति हो रही हो, अगर मैं यह न कहूं कि यह सुख है, तो हर सुख की प्रतीति की अपनी पीड़ा होती है. यह थोड़ा कठिन होगा समझना. हर सुख की प्रतीति की अपनी पीड़ा होती है.

प्रेम की भी अपनी पीड़ा है. सुख का भी अपना दंश है, सुख की भी अपनी चुभन है, सुख का भी अपना कांटा है-अगर नाम न दें. अगर नाम दे दें, तो हम सुख को अलग कर लेते हैं, दुख को अलग कर देते हैं. फिर सुख में जो दुख होता है, उसे भुला देते हैं-मान कर कि वह सुख का हिस्सा नहीं है. और दुख में जो सुख होता है, उसे भुला देते हैं-मान कर कि वह दुख का हिस्सा नहीं है क्योंकि हमारे शब्द में दुख में सुख कहीं भी नहीं समाता; और हमारे शब्द सुख में दुख कहीं भी नहीं समाता.

अगर अनुभव में उतरें, भीतर झांक कर देखें, तो जिसे हम प्रेम करते हैं, उसे हम घृणा भी करते हैं. अनुभव में, शब्द में नहीं. और जिसे हम घृणा करते हैं, उसे हम घृणा इसीलिए कर पाते हैं कि हम उसे प्रेम करते हैं; अन्यथा घृणा करना संभव न होगा. शत्रु से भी एक तरह की मित्रता होती है; एक तरह का लगाव होता है. मित्र से भी एक तरह का अलगाव होता है और एक तरह की शत्रुता होती है. शब्द की अड़चन है. शब्द हमारे ठोस हैं, और अपने से विपरीत को भीतर नहीं लेते.

अस्तित्व बहुत तरल और लिक्विड है; अपने से विपरीत को सदा भीतर लेता है. हमारे जन्म में मृत्यु नहीं समाती; लेकिन अस्तित्व में जन्म के साथ मृत्यु जुड़ी है, समाई हुई है. हमारी बीमारी में स्वास्थ्य के लिए कोई जगह नहीं है. लेकिन अस्तित्व में सिर्फ  स्वस्थ आदमी ही बीमार हो सकता है. अगर आप स्वस्थ नहीं हैं, तो बीमार न हो सकेंगे. बीमार होने के लिए जिंदा होना जरूरी है, बीमार होने के लिए स्वस्थ होना जरूरी है.

स्वास्थ्य के साथ ही बीमारी घटित हो सकती है. और अगर आपको पता चलता है कि मैं बीमार हूं, तो इसीलिए पता चलता है कि आप स्वस्थ हैं. अन्यथा बीमारी का पता किसको चलेगा? पता कैसे चलेगा? मैं यह कह रहा हूं कि जहां अस्तित्व है, वहां हमारे विपरीत भेद गिर जाते हैं और एक का ही विस्तार हो जाता है.



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