सत्संग : किस तरह बढ़ता है सच्चा मनोबल?
मनोबल हो तो कुछ भी असम्भव नहीं. मनोबल के साथ संकल्पबल जुड़ जाता है तो फिर व्यक्ति कुछ भी असाध्य-साध्य कर सकता है.
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य |
संसार के जितने भी असम्भव समझे जाने वाले कार्य सम्भव हुए हैं, उन सबमें मनोबल और संकल्पबल ही आधारभूत रूप से काम किया है. बस उसे कौन कितने परिमाण में अपने अंदर बढ़ा पाता है, यह उस पर निर्भर है. यहां एक बात समझनी जरूरी है कि यह मनोबल क्या है? मनोबल एक ऐसा साहस है जिसमें हर कार्य को सम्भव करने की क्षमता रहता है.
यह साहस, संकल्प और चैतन्य ऊर्जा आवेगों का समन्वय जैसा है, जिसके रहते व्यक्ति किसी भी परिस्थिति के सामना करने में सक्षम अनुभव करता है. हालांकि यह सबमें समान परिमाण में नहीं होता, किसी में कम और किसी में ज्यादा होता है. इसीलिए कोई-कोई प्रबल मनोबल सम्पन्न होते हैं और कोई महा डरपोक, छोटे-छोटे कामों में हार मानने तथा सामान्य कठिनाइयों में घबरा जाते हैं. वैसे कुछ अपवादों को छोड़कर भगवान ने शरीर और मन के अनुदान सभी को समान रूप से दिये हैं.
सैंडो और चंदगीराम शुरू में अति दुर्बल स्तर के व्यक्ति स्वास्थ्य सुधार पर अपना ध्यान केंद्रित करने के बाद संसार में माने हुए पहलवान बन गये. विद्या, सम्पन्नता, कुशलता आदि के संबंध में भी यही बात है. संसार के माने हुए वैज्ञानिक आइंस्टीन के बुद्धूपन से अध्यापक भी खिन्न थे और उनके बाप ने तो यहां तक कह दिया था कि ‘तेरी अपेक्षा एक पिल्ला पाल लेता तो अच्छा रहता.’ परन्तु जब आइन्स्टीन में मनोबल जागा और संकल्प उभरा तो उनकी गणना विश्व के अनुपम वैज्ञानिकों में हुई.
अंगद-हनुमान जैसे बंदर, नल-नील जैसे रीछ यदि अपनी रीति-नीति और दिशा धारा बदल कर अद्भुत पराक्रमी और असाधारण आदर्शवादी के रूप में विख्यात हो सकते हैं तो मनुष्य भी प्रभुप्रदत्त विभूतियों को सही तरीके से प्रयुक्त करके प्रखर एवं समुन्नत स्तर का बन सकता है. किसी भी क्षेत्र की सफलता अर्जित करने के लिए मनुष्य को सर्वप्रथम मनोबल को परिष्कृत एवं विकसित करना होता है. जिस मनोबल में उच्चस्तरीय सामथ्र्य होती है, वह तभी विकसित और हस्तगत होता है, जब उसके साथ आदशरे का भी समावेश हो और वैसे ही अभ्यास करते-करते उसे बढ़ाया जाय. जिनको मनोबल बढ़ाने की इच्छा हो, उन्हें आदर्शवादिता की राह अपनानी चाहिए.
(गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज, हरिद्वार)
Tweet |