सत्संग : कामना और करुणा

Last Updated 09 Feb 2016 01:12:19 AM IST

इस जगत में बिना कारण कुछ भी नहीं हो सकता. और कारण केवल दो ही हो सकते हैं, या तो कामना हो, या करुणा हो.


आचार्य रजनीश ओशो

या तो मैं कुछ लेने आपके घर आऊं या कुछ देने आऊं. आपके घर या तो लेने कुछ आऊं  तो कामना हो या कुछ देने आऊं  तो करुणा हो. तीसरा, आपके घर आने का कोई अर्थ नहीं है, कोई कारण भी नहीं है, कोई प्रयोजन भी नहीं है.

कामना से जितने जन्म होंगे, वे सब परतंत्र होंगे. क्योंकि आप मांगने के संबंध में स्वतंत्र कभी भी नहीं हो सकते. भिखमंगा कैसे स्वतंत्र हो सकता है? भिखमंगे के स्वतंत्र होने का कोई उपाय नहीं है. क्योंकि सारी स्वतंत्रता देने वाले पर निर्भर है, लेने वाले पर क्या निर्भर हो सकती है? लेकिन देने वाला स्वतंत्र हो सकता है. तुम न भी लो, तो भी दे सकता है, लेकिन तुम न दो, तो ले नहीं सकता.

महावीर और बुद्ध का जो सारा दान है, वह हमने लिया, यह जरूरी नहीं है. वह दिया उन्होंने, इतना निश्चित है. लेना अनिवार्य रूप से नहीं निकलता, लेकिन दिया. जो मिला, वह बांटने की इच्छा स्वाभाविक है. वह भी अंतिम इच्छा है. वह भी बंधन है. आना तो मुझे आपके घर तक पड़ेगा ही.

चाहे मैं मांगने आऊं  और चाहे देने आऊं. जो बड़ी कठिनाई है, वह यह है कि क्योंकि आपके घर सदा मांगने वाले ही आते रहे हैं और आप भी सदा कहीं मांगने ही गए हैं, इसलिए जो देने आएगा, उसको समझने की कठिनाई स्वाभाविक है. इसलिए एक और भी बहुत जटिल चीज पैदा हुई है कि क्योंकि आप देने को समझ ही नहीं सकते, इसलिए बहुत बार ऐसे आदमी को आपसे लेने का भी ढोंग करना पड़ा.

यह बात समझ के परे है कि कोई आदमी आपके घर देने आया हो, तो वह आपके घर रोटी मांगने आ गया है. इसलिए महावीर के सारे उपदेश किसी घर में भोजन मांगने के बाद दिए गए उपदेश हैं. वे सिर्फ धन्यवाद हैं. आपने जो भोजन दिया, उसके लिए धन्यवाद. आप इसी प्रसन्नता में होते हैं कि दो रोटी हमने दी है, बड़ा काम किया है. करुणा में आप इसको भी न समझ पाएंगे, क्योंकि करुणा की दृष्टि को यह भी देखना पड़ता है कि आप ले भी सकेंगे? और अगर आपको देने का कोई भी उपाय न दिया जाए तो आपका अहंकार इतनी कठिनाई पाएगा कि बिल्कुल न ले सकेगा.

साभार : ओशो वर्ल्ड फाउंडेशन, नई दिल्ली



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