असूया नहीं अनसूया बनो

Last Updated 02 Dec 2015 12:34:39 AM IST

कुछ लोगों के सोचने का ढंग ऐसा होता है कि दुनिया की सबसे अच्छी परिस्थिति में भी उन्हें सिर्फ त्रुटियां नजर आती हैं.


धर्माचार्य श्री श्री रविशंकर

ऐसे व्यक्ति को बढ़िया से बढ़िया दो, उसे फिर भी त्रुटि ही नजर आती है. अच्छे से अच्छा साथी हो, या सुंदरतम चित्र, उन्हें केवल दोष दिखाई देता है. ऐसी विचारधारा को असूया कहते हैं, और ऐसे व्यक्ति दिव्यज्ञान को जान नहीं सकते. असूया का अर्थ है-दोष ढूंढ़ना या सब जगह हानि पहुंचाने वाली मंशा देखना.

जैसे कि तुम्हारी किसी से मित्रता है और दस वर्षों के पश्चात कोई दोष देखकर तुम इसे तोड़ना  चाहते हो, तुम पूरे संबंध में कुछ भी अच्छा नहीं देखते, तुम त्रुटियां खोजते हो. यह असूया है. ‘असूया’ मतलब दोष खोजना-सब जगह बुरा उद्देश्य ही देखना. यह उस बच्चे की तरह है, जो अपनी मां से कहता है,‘तुम मुझे प्यार नहीं करती हो.’ बच्चे का यह सोचना गलत है. यदि मां बच्चे को प्यार नहीं करती, तो और कौन करेगा?

उसी प्रकार अगर कोई कहे,‘गुरुजी, आप मुझे प्यार नहीं करते’-यदि मैं उसे प्यार नहीं करता, तो भूल जाओ. दुनिया में और कौन उसे प्यार करेगा? और कहां उन्हें प्रेम मिलेगा? एक मां कुंठित हो सकती है पर एक गुरु नहीं. चेतना के अलग-अलग स्तरों पर ज्ञान भी अलग होगा. चेतना के एक विशेष स्तर पर तुम अनसूया बन जाओगे. ‘अनसूया’ अर्थात जो दोष नहीं खोजता. कृष्ण अजरुन से कहते हैं कि  वे उसको यह दिव्यज्ञान दे रहे हैं क्योंकि अजरुन अनसूया है.

‘तुम मेरे इतने करीब होकर भी मुझ में कोई दोष नहीं देखते हो’. दूर से लोगों में दोष छिप जाते हैं पर पास आकर नहीं छिप सकते. दूर से तो कंदर भी दिखाई नहीं देते. निकट से देखें तो समतल भूमि में गड्ढे होते हैं. यदि तुम्हारा ध्यान केवल गड्ढों पर ही है, तो दृश्य की विशालता तुम्हें कभी नहीं दिखाई देगी. यदि तुम ‘अनसूया’ नहीं हो, तो ज्ञान तुममें पनप नहीं सकता. तब ज्ञान देना निर्थक है.

अगर दर्पण पर धूल हो, उसके लिए झाड़न की जरूरत होती है. पर यदि तुम्हें मोतियाबिंद हो, कितनी भी सफाई कर लो, कोई लाभ नहीं. इसलिए, पहले मोतियाबिंद निकालना है, तब तुम देखोगे कि दर्पण तो साफ ही है. असूया-दोषारोपण, तुम्हें यह धारणा देता है ‘यह पूरी दुनिया ठीक नहीं है. किसी काम की नहीं है.’ अनसूया है यह जानना ‘इस दुनिया को देखने वाली मेरी दृष्टि ही धुंधली है.’ और जब तुम्हें अपनी गलत दृष्टि का आभास हो गया, तो आधी समस्या तो वहीं मिट गई.



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