हार में छिपी जीत

Last Updated 28 Nov 2015 02:10:21 AM IST

जिस दिन तुम्हारा अहंकार परिपूर्ण रूप से गिर जाता है और तुम्हें लगता है, मेरे किये कुछ भी न होगा, क्योंकि मेरे किये अब तक कुछ न हुआ.


आध्यात्मिक गुरु ओशो (फाइल फोटो)

 जब तुम्हारे करने ने बार-बार हार खायी; जब तुमने किया और हर बार असफलता हाथ लगी; जब कर-करके तुमने सिर्फ दुख ही पाया और कुछ न पाया; कर-करके नर्क ही बनाया, और कुछ न बनाया जब यह पीड़ा सघन होगी, जब तुम पूरे असहाय मालूम पड़ोगे, उस असहाय क्षण में ही समर्पण घटित होता है. वह तुम्हारा कृत्य नहीं है. वह तुम्हारे कृत्य की पराजय है. हारे को हरिनाम! जब तुम्हारी हार इतनी प्रगाढ़ हो गई कि अब जीत की कोई आशा भी न बची; जब तुम्हारी हार अमावस की अंधेरी रात हो गई कि अब एक किरण भी अहंकार की शेष नहीं रही, जब तुम्हें लगता है कि तुम कुछ नहीं कर पाओगे. पराजय की परिपूर्णता में समर्पण घटित होता है.

कोई किरण तुम संभाले हुए हो. तुम सोचते हो, इस बार नहीं हुआ, अगली बार होगा; आज नहीं हुआ, कल हो जायेगा. आज हार गया, वह अपनी शक्ति की कमी के कारण नहीं; परिस्थिति अनुकूल न थी. आज हार गया, क्योंकि भाग्य ने साथ न दिया. आज हार गया, क्योंकि मैंने चेष्टा ही पूरी न की. यदि मैं चेष्टा पूरी करता, ठीक सम्यक मुहूर्त चुनता, तो बराबर जीतता. सभी हारे हुए हार को समझा लेते हैं. हार को स्वीकार कौन करता है? हारा हुआ समझा लेता है कि लोग विरोध में थे. हारा हुआ समझा लेता है कि चेष्टा पूरी न हो सकी.  समझाना छोड़ो! उस समझाने में ही, उस तर्क में ही, तुम्हारा अहंकार शेष रह जाता है.

जिस दिन तुम अपनी हार को स्वभाव समझ लोगे कि मेरे किये होगा क्या कि मैं आज कमजोर हूं, कल बलशाली हो जाऊंगा. नहीं कि मुझे ठीक विधि का पता नहीं है, कल पता चल जायेगा. नहीं कि आज भाग्य ने साथ न दिया, कल देगा. कोई हर्ज नहीं, एक बार हारे तो सदा थोड़े ही हारेंगे. कभी तो भाग्य बरसेगा! कभी तो किस्मत साथ होगी! कभी तो परमात्मा दया करेगा!

अहंकार नपुंसक है स्वभाव से. उसके किये कुछ होता ही नहीं. तुम संकल्प कर ही लो; जितना तुमसे बन सके कर लो. हारो पूरी तरह. हार में विजय छुपी है. संकल्प की हार में समर्पण उठता है. जीत गये तो ठीक. अगर संकल्प से जीत गये तो ठीक; कोई जरूरत न रही. कुछ लोग जीत गये हैं. इक्के-दुक्के जीते हैं. रास्ता बड़ा कठोर है, बड़ा दुर्गम है! लेकिन कुछ लोग जीते हैं. तो पूरी कोशिश कर लो. अगर जीत गये, अगर संकल्प से पा लिया तो पा ही लिया. अगर न जीते, तो भी पूरी  कोशिश कर लेने के बाद हार समग्र होगी. तो पूरी तरह हार जाना. जीतकर पाने से हारकर पाने का मजा ज्यादा है.

साभार : ओशो वर्ल्ड फाउंडेशन, नई दिल्ली

 

 

ओशो
आध्यात्मिक गुरु


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