जोश और होश दोनों जरूरी

Last Updated 25 Nov 2015 12:15:52 AM IST

अगर तुम्हें सिर्फ सुखद घटनाएं ही मिलें तो तुम्हारा जीवन विरक्ति से गतिहीन हो जाएगा. तुम पत्थर-से बन जाओगे.


श्री श्री रविशंकर

इसलिए तुम्हें सचेतन रखने के लिए प्रकृति तुम्हें समय-समय पर छोटी-सी चुभन देती रहती है. अक्सर हम जीवन में दूसरों पर दोष लगाते हैं. हमें जीवन में दुख किसी व्यक्ति या किसी चीज से नहीं मिलता.

ये तुम्हारा अपना मन है जो तुम्हें दुखी करता है और तुम्हारा अपना मन है जो तुम्हें खुश और उत्साहित बनाता है. तुम्हारे पास जो भी है अगर तुम उससे पूरी तरह से संतुष्ट हो तो जीवन में कोई आकांक्षा नहीं रह जाती. आकांक्षा होना जरूरी है लेकिन अगर तुम उसके लिए उत्तेजित रहोगे तो वही उत्तेजना बाधा बन जाएगी.

जो लोग अति-महत्वत्त्कांक्षी और उत्तेजित होते हैं उनके साथ ऐसा ही होता है. केवल एक संकल्प रखो, ये है जो मुझे चाहिए-और उसे छोड़ दो! हम अपनी नकारात्मक भावनाओं के जरिए वातावरण को सूक्ष्म रूप से प्रदूषित करते हैं. कभी-कभी तनाव और नकारात्मकता से हम नहीं बच पाते हैं. हम कभी-कभी सब प्रकार के भावनाओं से गुजरते हैं. कभी निर्बल और दिशाहीन महसूस करते हैं.

ऐसा होना किसी को पसंद नहीं लेकिन ऐसा होता है तो ऐसी स्थिति को किस तरह संभालें! अन्य चीजों के बारे में हम बहुत सुनते हैं लेकिन अपने आप को सुनने में हम बहुत कम समय बिताते हैं. यह सबसे ज्यादा दुर्भाग्य की बात है.

हमारी सांस महत्वपूर्ण सीख देती है, जो हम भूल गए हैं. मन की हर लय के अनुसार एक विशेष सांस की लय जुड़ी है, और सांस की हरेक लय के अनुसार एक विशेष भावना जुड़ी है. तो जब तुम प्रत्यक्ष रूप से अपना मन नहीं संभाल सकते, तब सांस के द्वारा मन को संभाल सकते हो. एक और उपाय है जोश का आह्वान करना. जब अर्जुन कमजोर और असहाय महसूस कर रहे थे, कृष्ण ने यही किया था. उन्होंने कहा, ‘तुम शर्मिदा नहीं हो, तुम एक योद्धा हो और ऐसी बातें कह रहे हो.

कृष्ण ने अर्जुन के अवसाद पर काबू पाने के लिए उनके  अहंकार को हिलाया और फिर उन्हें ज्ञान की तरफ ले गए. व्यक्ति को जोश और होश दोनों की जरूरत होती है. इस संसार में हरेक चीज़ हमेशा सही नहीं हो सकती. जीवन सुंदर रहस्य है और तुम धन्य हो. जब तुम जीवन के रहस्य को जीने लगोगे तभी आनंद प्रकट होगा.



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