साधना मार्ग की बाधा
जीवन का भौतिक पहलू हो या आध्यात्मिक, कोई भी निरापद नहीं है.
धर्माचार्य पं. श्रीराम शर्मा आचार्य |
सांसारिक कार्यों में सफलता के इच्छुक व्यक्ति मार्ग में पड़ने वाली आर्थिक, तकनीकी, प्रतिस्पर्धात्मक आदि बाधाओं से छुटकारा पाने का मार्ग भी पहले से निर्धारित कर लेते हैं अथवा उनका सामना करने के लिए कमर कसकर तैयार हो जाते हैं. अध्यात्म मार्ग में भी कम विघ्न बाधाएं नहीं होती. आध्यात्मिक एवं सांसारिक उपलब्धियों की बाधाओं में अंतर मात्र इतना है कि भौतिक प्रगति के मार्ग में बाह्य विघ्न बाधाएं अधिक होती हैं, जबकि आत्मिकी क्षेत्र में मनुष्य की स्व उपार्जित विघ्न बाधाएं ही प्रधान होती हैं. आत्मिक मार्ग के प्रत्येक पथिक को महान कायरे, ईश्वर प्राप्ति आदि के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाओं से परिचित होना आवश्यक है.
साधक यदि बीमार रहता हो, तो उसके लिए नियमित रूप से साधना, उपासना, स्वाध्याय, सत्संग का लाभ उठा पाना कठिन होता है. तामसी एवं असंयम पूर्ण भोजन से चित्त में चंचलता तथा दोषपूर्ण विचार उत्पन्न होते हैं, जिससे चिंतन विकृत होता चला जाता है. इसीलिए साधना काल में साधक को सात्विक, पौष्टिक तथा प्राकृतिक रसों से परिपूर्ण सादा आहार ही ग्रहण करना चाहिए. बड़े और महान कार्य समय एवं श्रम साध्य होते हैं. इसमें शंका-आशंका करने वालों को सफलता नहीं मिलती. इसके लिए दृढ़ विश्वासी, संकल्प के धनी व्यक्ति ही सफल हो पाते हैं. बार-बार संदेह किसी भी कार्य को असफल ही करता है. गुरु बनाते समय ध्यान रखना चाहिए कि वह उस विषय विशेष का पूर्ण ज्ञाता हो.
किसी कार्य को ठीक एक समय पर नियमपूर्वक करते रहने से उसकी आदत बन जाती है. नियमितता के अभाव में कोई भी साधना सफल नहीं होती. कुर्तको को त्याग साधक को आत्मा की आवाज सुनना और उसका अनुसरण करना चाहिए, क्योंकि सामाजिक रीति-रिवाज, मर्यादा, धर्म, ईश्वर, अस्तित्व यह सब विषय ऐसे हैं, जिन्हें तर्क द्वारा हल नहीं किया जा सकता. दूसरों के दोषों को देखने में अपनी शक्ति खर्च न करें. हम सभी सत्य की खोज में दौड़ रहे हैं. कोई भी पूर्ण सत्य को प्राप्त नहीं कर सका. यह मानकर दूसरों के धर्म, उनकी मान्यताओं के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाएं. कट्टरता की संकीर्णता साधना मार्ग का सबसे बड़ा अवगुण है.
-गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज, हरिद्वार
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