सत्संग : दृष्टिकोण का फर्क

Last Updated 03 Sep 2015 12:44:19 AM IST

हर मनुष्य की अपनी एक दुनिया है. वह उसकी अपनी बनाई हुई है और वह उसी में रमण करता है.


धर्माचार्य पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

दुनिया वस्तुत: कैसी है? इसका एक ही उत्तर हो सकता है कि वह जड़ परमाणुओं की नीरस और निर्मम हलचल मात्र है. यहां अणुओं की धूल बिखरी पड़ी है और वह किन्हीं प्रवाहों में बहती हुई इधर-उधर भगदड़ करती रहती है. इसके अतिरिक्त यहां ऐसा कुछ नहीं है जिसे स्वादिष्ट-अस्वादिष्ट या रूपवान-कुरूप कहा जा सके. वस्तुत: कोई वस्तु न मधुर है न कड़वी, हमारी अपनी संरचना ही अमुक वस्तुओं के साथ तालमेल बिठाने पर जैसी कुछ प्रतिक्रिया उत्पन्न करती है उसी आधार पर हम उसका रंग, स्वाद आदि निर्धारण करते हैं. यही बात प्रिय अथवा अप्रिय के संबंध में लागू होती है.

अपने और बिराने के संबंध में भी अपनी ही दृष्टि और मान्यता काम करती है. वस्तुत: न कई अपना है न बिराना. इस दुनिया के आंगन में अगणित लोग खेलते हैं. इनमें से कभी कोई किसी के साथ हो जाता है तो कोई प्रतिपक्षी का खेल खेलता है. इन क्षणिक संयोगों और संवेगों को बालबुद्धि जब बहुत अधिक महत्व देने लगती है तो प्रतीत होता है कि कुछ बहुत बड़ी अनुकूलता-प्रतिकूलता उत्पन्न हो गई है.

संसार के स्वरूप निर्धारण में उन्हें जानने-समझने में पांच ज्ञानेंद्रियों की भांति ही  मन:संस्थान के चार चेतना केंद्र भी काम करते हैं. अतएव उन्हें भी अनुभूति उपकरणों में ही गिना गया है. हमारा समस्त ज्ञान इन्हीं उपकरणों के आधार पर टिका है. मनुष्यों की भिन्न-भिन्न मन:स्थिति के कारण ही एक ही तथ्य के संबंध में परस्पर विरोधी मान्यताएं एवं रुचियां होती हैं. यदि यथार्थता एक ही होती तो सबके एक ही तरह के अनुभव होते.

जबकि एक व्यक्ति परमार्थ परोपकार में संलग्न होता है, तो कोई दूसरा अपराधों में. एक को भोग प्रिय है, तो दूसरे को त्याग. एक को प्रदर्शन में रुचि है, तो दूसरे को सादगी में. इन भिन्नताओं से यही सिद्ध होता है कि वास्तविक सुख-दुख, हानि-लाभ कहां है, किसमें हैं? इसका निर्णय किसी सार्वभौम कसौटी पर नहीं, मन:संस्थान की स्थिति के आधार पर ही किया जाता है. यह सार्वभौम सत्य यदि प्राप्त हो गया होता, तो संसार में मतभेदों की कोई गुंजाइश न रहती. सुख और दुख की अनुभूति सापेक्ष है. एक-दूसरे की तुलना कर स्थिति के भले-बुरे का अनुभव किया जाता है.

-गायत्रीतीर्थ शान्तिकुंज, हरिद्वार



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