जीवन आनंद उठाओ
अगर तुम्हें सिर्फ सुखद घटनाएं ही मिलें तो तुम्हारा जीवन विरक्ति से गतिहीन हो जाएगा. तुम पत्थर-से बन जागे.
धर्माचार्य श्री श्री रविशंकर |
इसलिए तुम्हें सचेतन रखने के लिए प्रकृति तुम्हें समय-समय पर छोटी-सी चुभन देती रहती है. अक्सर हम जीवन में दूसरों पर दोष लगाते हैं. हमें जीवन में दुख किसी व्यक्ति या किसी चीज से नहीं मिलता. ये तुम्हारा अपना मन है जो तुम्हें दुखी करता है और तुम्हारा अपना मन है जो तुम्हें खुश और उत्साहित बनाता है. तुम्हारे पास जो भी है अगर तुम उससे पूरी तरह से संतुष्ट हो तो जीवन में कोई आकांक्षा नहीं रह जाती.
आकांक्षा होना जरूरी है लेकिन अगर तुम उसके लिए उत्तेजित रहोगे तो वही उत्तेजना बाधा बन जाएगी. अगर पूरे जोर से पानी निकलते हुए नल के नीचे तुम कप रखोगे तो वह कप पानी से कभी नहीं भर पाएगा. नल का पानी सही गति में रखो और कप पानी से भर जाएगा. जो लोग अति-महत्वकांक्षी और उत्तेजित होते हैं उनके साथ ऐसा ही होता है. केवल एक संकल्प रखो, ये है जो मुझे चाहिए- और उसे छोड़ दो!
हम अपनी नकारात्मक भावनाओं के जरिए वातावरण को सूक्ष्म रूप से प्रदूषित करते हैं. कभी-कभी तनाव और नकारात्मकता से हम नहीं बच पाते हैं. तुम कभी-कभी सब प्रकार की भावनाओं से गुजरते हो. कभी तुम निर्बल और दिशाहीन महसूस करते हो. ऐसा होना किसी को पसंद नहीं लेकिन ऐसा होता है. तो ऐसी स्थिति को किस तरह संभालें. अन्य चीजों के बारे में हम बहुत सुनते हैं लेकिन अपने आप को सुनने में हम बहुत कम समय बिताते हैं.
यह सबसे ज्यादा दुर्भाग्य की बात है. हमारी सास हमें एक बहुत महत्वपूर्ण सीख देती है, जो हम भूल गए हैं. मन की हरेक लय के अनुसार एक विशेष सांस की लय जुड़ी है और सांस की हरेक लय के अनुसार एक विशेष भावना जुड़ी है. तो जब तुम प्रत्यक्ष रूप से अपना मन संभाल नहीं सकते, तब सांस के द्वारा मन को संभाल सकते हो. यह जीवन एक सुंदर रहस्य है और तुम धन्य हो. जब तुम जीवन के रहस्य को जीने लगोगे तभी जीवन में आनंद प्रकट होगा.
संपादित अंश ‘सच्चे साधक के लिए अंतरंग वार्ता’ से साभार
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