सत्संग : आत्मा सुख का स्रोत

Last Updated 05 Aug 2015 02:21:18 AM IST

तीन विषय हैं आत्मा, इंद्रियां एवं वस्तु (संसार) और तीन शब्द हैं सुख, दुख और सखा. इन तीनों की शब्दों में एक समानता है ‘ख’ जिसका अर्थ है इंद्रियां.




धर्माचार्य आचार्य श्री श्री रविशंकर

आत्मा इंद्रियों के द्वारा संसार का अनुभव करती है. जब इंद्रियां आत्मा के साथ रहती हैं तब सुख होता है, क्योंकि आत्मा सुख और आनंद का स्रोत है. जब इंद्रियां आत्मा से विमुख हो भौतिक विषयों के दलदल में फंस जाती हैं, तब दुख होता है. यही दुख है.

आत्मा का स्वभाव ही आनंद है. सभी इंद्रियां आत्मा की ओर उड़ान भरने के लिए हैं. किसी भी सुखद अनुभूति में तुम आंखें मूंद लेते हो- जैसे किसी सुगंधित फूल को सूंघते हो या कोई स्वादिष्ट खाना चखते हो अथवा किसी वस्तु को स्पर्श करते हो.

यानी सुख वह है जो आत्मा की ओर ले जाता है. दुख आत्मा से विमुख करता है. दुख का यही अर्थ है कि तुम आत्मा पर केंद्रित होने के बदले विषयवस्तु में फंसे हो जो परिवर्तनशील है.

‘स-खा’- शब्द का अर्थ है ‘वह ही इंद्रिय है’. सखा वह है जो तुम्हारी इंद्रिय ही है. अर्थात तुम्हारे माध्यम से मुझे ज्ञान मिलता है, तुम मेरी छठी इंद्रिय हो. जिस प्रकार मैं अपने मन पर विश्वास करता हूं, उसी तरह तुम पर भी विास करता हूं. एक मित्र इंद्रियों की अनुभूति का विषय हो सकता है परंतु ‘सखा’ स्वयं इंद्रिय बन जाता है.

‘सखा’ वह साथी है जो सुख और दुख, दोनों अनुभवों में साथ रहता है, अर्थात सखा वह है जो तुम्हें आत्मा की ओर वापस ले जाता है. जब तुम किसी विषय-भोग में फंस जाते हो तब जो ज्ञान तुम्हें आत्मा की ओर वापस लाता है, वही सखा है. ज्ञान तुम्हारा साथी है और तुम्हारा साथी ज्ञान है. गुरु ज्ञान का प्रतिरूप है. सखा का अर्थ है ‘वह मेरी इंद्रियां हैं, मैं संसार को उसी ज्ञान के द्वारा उनके माध्यम से देखता हूं.’

कुछ वर्षो में तुम्हारा मस्तक मिट्टी में होगा, जीते जी अपना सिर कीचड़ से मत भरो. गुरु की दृष्टि से देखो तो पूरा वि दिव्य दिखेगा.

 संपादित अंश ‘सच्चे साधक के लिए अंतरंग वार्ता’ से साभार



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment