सत्संग : गुरु से निकटता का गुरुमंत्र

Last Updated 08 Jul 2015 01:34:21 AM IST

यदि तुम खुद को गुरु के निकट अनुभव नहीं कर पा रहे हो, तो इसका कारण तुम ही हो. तुम्हारा मन, तुम्हारा अहंकार तुम्हें उससे दूर रख रहा है.


धर्माचार्य श्री श्री रविशंकर

जो कुछ भी तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण है, अंतरंग है, उसे गुरु के साथ बांट लो, बता दो. संकोच मत करो, शरमाओ नहीं, इस पर स्वयं अपना निर्णय मत लो.

यदि तुम अपनी आंतरिक व महत्वपूर्ण बातें गुरु को नहीं बताओगे, केवल साधारण शिष्टाचार वाली बातें करोगे, तब उनके साथ निकटता का अनुभव नहीं कर सकोगे. ‘आप कैसे है? कहां जा रहे हैं सब कैसे चल रहा है?’ ऐसी नियमित और ऊपरी बातें गुरु के साथ मत करो. अपना हृदय खोलकर मन की गहराइयों में समाई आंतरिक व महत्वपूर्ण बातें करो. सिर्फ यह मत करो कि शरबत की बोतल का दाम क्या है! यदि तुम गुरु से निकटता अनुभव नहीं कर रहे हो, तो उन्हें गुरु मानने की आवश्यकता क्या है? वह तुम्हारे लिए एक और बोझ है. तुम्हारे लिए ऐसे ही बहुत से बोझ हैं. उन्हें अलविदा कह दो.

गुरु द्वारा यदि तुम्हें दूर रखा जाए, डांटा जाए, तुम्हारी ओर न देखा जाए तो तुम और अधिक निकटता का अनुभव करो. क्योंकि किसी की उपेक्षा करने के लिए भी बहुत प्रयत्न करना पड़ता है. जब गुरु किसी उपहार के सुन्दर आवरण अथवा गुलदस्ते में रखे हुए एक फूल की भी उपेक्षा नहीं कर सकते हैं, तो फिर वह एक चलते-फिरते, बोलते, सांस लेते व्यक्ति की- जो उनसे जुड़ा है, कैसे उपेक्षा कर सकते हैं? जैसे ही तुम यह बात समझ जाओगे, गुरु से निकटता का अनुभव होने लगेगा.

तुम गुरु के साथ उनके आनन्द, उनकी चेतना के सहभागी हो. इसके लिए तुम्हें अपने आपको खाली करना पड़ेगा. जो भी है, गुरु को बताओ और यह मत सोचो- ‘यह तो कूड़ा है’. गुरु तुम्हारे मन के सारे कूड़े को लेने के लिए तैयार हैं. तुम जैसे भी हो, वे स्वयं सीने से लगा लेंगे. वे तुम्हारा बोझ हल्का करने के लिए तैयार हैं. अपनी ओर से उसे देने के लिए तुम्हें तैयार होना है.



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