सत्संग : पराभक्ति में आकांक्षा नहीं

Last Updated 04 Jul 2015 01:23:35 AM IST

बुद्ध ने कहा है, जैसे सागर को कहीं से भी चखो, खारा है- ऐसा ही सत्य भी है. उसका एक स्वाद है, एक रस है.


धर्माचार्य आचार्य रजनीश ओशो

पराभक्ति के विभाजन नहीं हैं, गौणी भक्ति के हैं. मनुष्य तीन प्रकार के हैं, इसलिए स्वभावत: उनकी भक्ति भी तीन प्रकार की हो जाती है. प्रकाश का एक ही रंग है, लेकिन कांच के टुकड़े से प्रकाश निकल जाए तो सात रंग का हो जाता है. कांच उसे सात रंगों में विभाजित कर देता है. ऐसे ही वष्रा के दिनों में, हवा में, वायुमंडल में छोटे-छोटे पानी के कण झूलते रहते हैं. उन कणों से निकलती सूरज की किरण सात हिस्सों में टूट जाती है. तो वष्रा के दिन हों, सूरज निकला हो तो इन्द्रधुनष बन जाता है. किरण तो एकरंगी है, लेकिन सप्तरंगी हो जाती है.

भक्ति एकरंगी है, लेकिन मनुष्य तीन तरह के हैं; इसलिए गौण अर्थ में भक्ति तीन तरह की हो जाती है. उन्हें भी समझ लेना जरूरी है, क्योंकि बड़ी बहुमूल्य बात उनमें छिपी है. सत्व, रज, तम- ऐसे तीन मनुष्य के विभाजन हैं. मनुष्य सात्विक भक्ति करेगा तो सत्व के हस्ताक्षर होंगे. राजसी भक्ति करेगा तो भक्ति में भी राजस गुण समाविष्ट हो जाएगा. तामसी भक्ति करेगा तो तमस से बचा न सकेगा अपनी भक्ति को. सात्विक भक्ति का अर्थ होता है- व्यक्ति पापों के विमोचन के लिए, अंधकार से मुक्त होने के लिए, मृत्यु से पार जाने के लिए भक्ति कर रहा है.

भक्ति में आकांक्षा है सात्विक पुरुष की भी, इसलिए वह पराभक्ति नहीं. पराभक्ति में परमात्मा को पाने की आकांक्षा भी नहीं है. क्योंकि जहां आकांक्षा है, वहां मनुष्य आ गया. तुम्हारी आकांक्षा से जो भी गुजरेगा, तुम्हारी आकांक्षा के रूप को ले लेगा. तुम्हारी आकांक्षा उसे शुद्ध न रहने देगी. उसका कुआंरापन खो जाएगा. आकांक्षा भ्रष्ट करती है. तो सत्व की आकांक्षा भी यद्यपि बड़ी ऊंची आकांक्षा है, पर कितनी ही ऊंची हो, पृथ्वी का ही हिस्सा है. आकाश में कितना भी ऊपर उठ जाए तो भी आकाश रूप नहीं हो गयी है. सात्विक की भक्ति बड़ी ऊंचा उठती है, गौरीशंकर बन जाती है, फिर भी जुड़ी पृथ्वी से ही रहती है.

अभी भी मन में कुछ पाने का खयाल होता है और जहां तक पाने का खयाल है, वहां तक संसार है. तुम मोक्ष भी चाहोगे तो तुम्हारा मोक्ष तुम्हारे संसार का ही फैलाव है. तुम्हारे कांच के टुकड़े से, तुम्हारी आकांक्षा के टुकड़े से गुजरकर मोक्ष भी मोक्ष न रह जाएगा. मोक्ष भी मांगोगे तो फिर-फिर संसार को ही मांग लोगे, थोड़ा सुधार कर, थोड़ा रंग-रोगन बदलकर. लेकिन तुमसे ही जुड़ा रहेगा तुम्हारा मोक्ष. इसीलिए तुम्हारा मोक्ष स्वर्ग रूप में प्रकट होता है, मोक्ष रूप में नहीं.

साभार : ओशो वर्ल्ड फाउंडेशन, नई दिल्ली



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