गायत्री की अपार महिमा
गायत्री की महिमा का वेद, शास्त्र, पुराण सभी वर्णन करते हैं. ‘हम साधकों द्वारा स्तुत (पूजित) हुई, अभीष्ट फल प्रदान करने वाली वेदमाता (गायत्री) द्विजों को पवित्रता और प्रेरणा प्रदान करने वाली हैं.
धर्माचार्य पं. श्रीराम शर्मा आचार्य |
आप हमें दीर्घ जीवन प्राणशक्ति, सुसंतति, कीर्ति, धन-वैभव और ब्रह्मतेज प्रदान करके ब्रह्मलोक के लिए प्रस्थान करें. (अथर्ववेद ). ‘जिस प्रकार पुष्पों का सारभूत मधु, दूध का घृत, रसों का पय है, उसी प्रकार गायत्री मंत्र समस्त वेदों का सार है.’ (बृहद योगियाज्ञवल्क्यस्मृति). ‘गायत्री वेदों की जननी है.
गायत्री पापों का नाश करने वाली है. गायत्री से अन्य कोई पवित्र करने वाला मंत्र स्वर्ग व पृथ्वी पर नहीं है.’ (शंख स्मृति) ‘जिस प्रकार देवताओं में अग्नि मनुष्यों में ब्राह्मण, ऋतुओं में वसंत श्रेष्ठ है, उसी प्रकार छंदों में गायत्री श्रेष्ठ है.’ (महानारायणोपनिषद). ‘गायत्री का मनन करने से पाप छूटते हैं, स्वर्ग प्राप्त होता है और मुक्ति मिलती है तथा चतुर्वर्ग (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) सिद्ध होते हैं.’(गायत्री तंत्र).
गायत्री की महिमा अनंत है. वेद-पुराण, शास्त्र, ऋषि-मुनि, गृहस्थ-विरागी सभी समान रूप से इसका महत्त्व स्वीकार करते हैं. इसमें हमारे दृष्टिकोण को बदल देने की अद्भुत शक्ति है. उलटी विचारधारा, भावनाएं यदि उचित स्थान पर आ जाएं तो यह मनुष्य देवयोनि से बढ़कर और यह भूलोक सुरलोक से बढ़कर हर किसी के लिए आनंददायक हो सकता है. हमारी उलटी बुद्धि ही स्वर्ग को नरक बनाए है. इस विषम स्थिति से उबारकर हमारे विचारों को परिवर्तित करने की शक्ति गायत्री में है. जो उस शक्ति का उपयोग करता है, वह विषय-विकारों, भ्रांत-विचारों और दुर्भावों के भव-बंधन से छूटकर जीवन के सत्य, शिव और सुंदर रूप का दर्शन करता हुआ, परमात्मा तथा शात शांति प्राप्त करता है. इसलिए वेदमाता को महामहिमामयी कहा गया है. उसका माहात्म्य अनंत है.
वेद भगवान की घोषणा है कि गायत्री माता आशीर्वाद के रूप में अपने पुत्रों को आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति, द्रविण, ब्रह्मवर्चस प्रदान करती हैं. यही वि मानव की सबसे बड़ी सम्पति है. इनकी प्राप्ति से अभाव, अशक्ति और अज्ञान के तीनों प्रकार के दु:खों से निवृत्ति हो जाती है. जिस देश में दीर्घायु, बलिष्ठ प्राण, सुसन्तति, पुष्टांग पशु तथा यशस्कर धनवान, ब्रह्मवर्चसी नवयुवक उत्पन्न हों, वह राष्ट्र उन्नति के उच्च शिखर पर पहुंच जाता है. इसलिए उपरोक्त फलों को प्रत्यक्ष करने के लिए गायत्री माता की गोद में बैठ कर उसके शक्तिमय दुग्ध का पान अवश्य करना चाहिए..
गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज, हरिद्वार
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