ध्यान की समझ

Last Updated 25 Apr 2015 01:50:57 AM IST

किसी बुद्धपुरुष के वचनों को पूरा-पूरा समझना हो तो ध्यान के बिना कोई उपाय नहीं है.


धर्माचार्य आचार्य रजनीश ओशो

लेकिन थोड़ी-थोड़ी झलक मिल सकती है ध्यान के बिना भी. थोड़ी-थोड़ी भनक पड़ सकती है बिना ध्यान के भी. अगर यह भनक न पड़ती होती तो फिर तुम चलोगे ही कैसे! तब तो तुम कहोगे, जब ध्यान होगा तब समझ में आएगा और जब तक समझ में नहीं आया तब तक चलें कैसे? तब तो तुम एक बड़े चक्कर में पड़ जाओगे, एक दुष्चक्र में पड़ जाओगे. इसलिए दो बातों का ख्याल रखना. न तो यह बात सच होती है कि जो बुद्धपुरुष कहते हैं, वह तुमने सिर्फ सुन लिया बुद्धि से और समझ में आ जाएगा.

 नहीं, अगर इतने से ही समझ में आ जाए तो फिर ध्यान की कोई जरूरत ही न रहेगी. और न ही दूसरी बात सच है कि जब ध्यान होगा तभी समझ में आएगा. क्योंकि अगर ध्यान होगा, तभी समझ में आएगा, तब तो तुम ध्यान भी कैसे करोगे? बुद्धपुरुषों में कुछ रस आने लगे तभी तो ध्यान में लगोगे न! तो बुद्धपुरुषों की वाणी पूरी तो तभी समझ में आएगी जब तुम भी बुद्धपुरुष हो जाओगे. जब तुम भी उन जैसे हो जाओगे तभी पूरा अनुभव होगा. लेकिन अभी थोड़ी भनक तो पड़ ही सकती है.

छोटा बच्चा चलना शुरू करता है तो तुरंत दौड़ नहीं सकता पर लड़खड़ा तो सकता है! और अगर कहो कि लड़खड़ा भी नहीं सकता, तब तो फिर कभी चल ही न सकेगा. छोटा बच्चा जब पहले कदम उठाता है, तो देखा, कैसा डरा-डरा, सहारे की आकांक्षा रखता है. मां का हाथ पकड़कर हिम्मत करके दो कदम चल लेता है.

छोटे बच्चे के पास अपने शरीर को संभालने योग्य काफी पैर हैं. तुम्हारे बराबर पैर नहीं तो तुम्हारे बराबर शरीर भी तो है, लेकिन अनुपात उतना ही है जितना तुम्हारा. तुम्हारे बड़े शरीर को संभालने के लिए बड़े पैर हैं, उसके छोटे शरीर को संभालने के लिए छोटे पैर हैं. मगर अभी अनुभव नहीं है. उसे भरोसा नहीं है कि मैं खड़ा हो सकूंगा. उसे यह आत्मविश्वास नहीं. तो मां का हाथ पकड़कर चल लेता है.

गुरु का हाथ पकड़कर चलने का इतना ही अर्थ होता है कि जहां तुम अभी नहीं चले हो-यद्यपि चल सकते हो, लेकिन तुमने कभी प्रयास नहीं किया है-तो कोई जो चल चुका है, कोई जो चल रहा है, तुम उसका हाथ पकड़ लेते हो. फिर धीरे-धीरे मां अपना हाथ छुड़ाने लगती है, फिर अंगुली ही पकड़ कर रखती है, और धीरे-धीरे अंगुली भी खींच लेती है. फिर एक दिन बच्चा पाता है कि अरे, वह तो खुद ही खड़ा होकर चल सकता है!

साभार : ओशो वर्ल्ड फाउंडेशन, नई दिल्ली



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