शून्य का अर्थ संपूर्ण विसर्जन

Last Updated 31 Jan 2015 01:18:00 AM IST

शून्य का अर्थ किसी का स्मरण नहीं, समस्त का विसर्जन है. हमने अपने को खोया नहीं है, हमने केवल अपने को विस्मृत किया है.


आचार्य रजनीश ओशो

हम अपने को खो सकते ही नहीं. स्वरूप को खोया नहीं जा सकता, केवल विस्मरण है. विस्मरण इसलिए किया कि दूसरी बातों के स्मरण ने चित्त को भर दिया है. मैं दूसरी चीजों से भरा हुआ हूं. अगर वे सारे शब्द, सब विचार और सारा स्मरण विसर्जित हो जाए तो स्व का बोध उत्पन्न हो जाएगा. स्मरण नहीं करना है, विस्मरण करना है. समस्त स्मरण छूट जाए तो स्व-स्मरण जाग्रत हो जाता है.

किसी ने पूछा है, जब बुद्धि असफल हो जाती है तो क्या हम श्रद्धा का सहारा न लें! श्रद्धा भी बुद्धि है. श्रद्धा बौद्धिक होती है. हम समझते हैं कि अश्रद्धा बौद्धिक होती है और श्रद्धा बौद्धिक नहीं होती है. अश्रद्धा भी बौद्धिक होती है, श्रद्धा भी बौद्धिक होती है. जो मानता है कि मैं ईश्वर को मानता हूं, वह किस चीज से मान रहा है ईश्वर को? बुद्धि से मान रहा है? जो कहता है, मैं ईश्वर को नहीं मानता, वह किससे नहीं मान रहा है? वह बुद्धि से नहीं मान रहा है.

अगर बुद्धि बिल्कुल असफल हो जाए खोजने में और कह दे कि मेरी बुद्धि कुछ नहीं खोजती तो न वह बुद्धि श्रद्धा करेगी, न अश्रद्धा क्योंकि श्रद्धा भी खोज है, अश्रद्धा भी खोज है. जो कह रहा है, ईश्वर नहीं है, उसने भी कुछ खोज लिया. जो कह रहा है, ईश्वर है, उसने भी खोज लिया. दोंनो की बुद्धि सफल हो गयी. बुद्धि टोटल फेल्योर हो जाए तो आप सत्य को उपलब्ध हो जाएंगे. अगर बुद्धि कह दे कि मैं कुछ नहीं खोज पा रही और बुद्धि पर से आस्था उठ जाए और बुद्धि से बिल्कुल निराश हो जाएं तो आपके भीतर प्रज्ञा का जागरण हो जाएगा.

जब तक बुद्धि की आस्था बनी है- चाहे श्रद्धा में, चाहे अश्रद्धा में-तब तक प्रज्ञा का, इंट्यूशन का जागरण नहीं होगा. इंटेलीजेंस बिल्कुल असफल हो जाए और आपकी आस्था उस तरफ से बिल्कुल उठ जाए कि बुद्धि से कुछ भी न होगा तो आपके भीतर एक नया द्वार खुल जाएगा जिसे इंट्यूशन कहते हैं, प्रज्ञा कहते हैं. बुद्धि की असफलता बड़ा सौभाग्य है. एक अंतिम प्रश्न और है- ईश्वर और आत्मा में क्या संबंध है? क्या आत्मा ही परमात्मा है? मैं कोई उत्तर आपको इस संबंध में दूं तो गलत होगा. मैं आपको नहीं कहता कि आत्मा क्या है और परमात्मा क्या है? मैं आपको इतना ही कहता हूं कि कैसे उन्हें जाना जा सकता है. आत्मा क्या है, यह कहना संभव नहीं है. आज तक संभव नहीं हुआ है किसी व्यक्ति ने इस जगत में यह नहीं कहा कि आत्मा क्या है!

साभार : ओशो वर्ल्ड फाउंडेशन, नई दिल्ली



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