जीवन मौन और शांत प्रवाह है

Last Updated 20 Dec 2014 02:24:45 AM IST

जीवन बाहर से एक झंझावात है- एक अनवरत द्वंद्व, एक उपद्रव, एक संघर्ष. लेकिन ऐसा केवल सतह पर है.


धर्माचार्य आचार्य रजनीश ओशो

जैसे सागर के ऊपर उन्मत्त और सतत संघर्षरत लहरें होती हैं. लेकिन यही सारा जीवन नहीं है. गहरे में एक केंद्र भी है. मौन, शांत. न कोई द्वंद्व, न कोई संघर्ष. केंद्र में जीवन एक मौन और शांत प्रवाह है, जैसे कोई सरिता बिना संघर्ष, बिना कलह, बिना शोरगुल के बस बह रही हो. उस अंतस केंद्र की ही खोज है. तुम सतह के साथ, बाह्य के साथ तादात्म्य बना सकते हो.

फिर संताप और विषाद घिर आते हैं. हमने सतह के साथ और उस पर चलने वाले कलह के साथ  तादात्म्य बना लिया है. यदि केंद्र में अपनी जड़ें जमा सको तो परिधि की अशांति भी सुंदर हो जाएगी. यदि भीतर से मौन हो सको तो बाहर की सब ध्वनियां संगीतमय हो जाती हैं. लेकिन यदि तुम आंतरिक केंद्र को, मौन केंद्र को नहीं जानते, यदि परिधि के साथ ही एकात्म हो तो विक्षिप्त हो जाओगे और सभी करीब-करीब विक्षिप्त हैं.

सभी धार्मिक विधियां, योग विधियां तुम्हें पुन: उस केंद्र के संपर्क में ले आने के लिए हैं. ये विधियां भीतर मुड़ने के लिए, अपने अंतस में इतना गहन विश्राम करने के लिए हैं कि बाह्य बिलकुल मिट जाए और केवल अंतस ही बचे. एक बार तुम जान जाओ कि कैसे पीछे मुड़ना है, कैसे स्वयं में उतरना है तो कुछ  कठिन नहीं रह जाता है. फिर सब कुछ एकदम सरल हो जाता है. लेकिन यदि तुम्हें पता न हो, केवल परिधि के साथ मन के तादात्म्य का ही पता हो, तो बहुत कठिन है. स्वयं में विश्राम करना कठिन नहीं है, परिधि से तादात्म्य तोड़ना कठिन है.

एक सूफी फकीर अंधेरी रात में रास्ता भटक गया और खाई में गिर गया. अंधेरे में पता नहीं चल रहा था कि खाई कितनी गहरी है और नीचे क्या है. उसने एक वृक्ष की टहनी पकड़ ली और प्रार्थना करने लगा. सर्दी से उसके हाथ इतने जम चुके थे कि लटके रहने का कोई उपाय न था. लेकिन जिस क्षण गिरा, नाचने लगा. क्योंकि वहां कोई खाई थी ही नहीं, वह समतल जमीन पर था. और सारी रात उसने कष्ट भोगा... यही स्थिति है.

तुम सतह से चिपके चले जाते हो, इस भय से कि सतह छोड़ दी तो खो जाओगे. असल में, इस तरह चिपकने के कारण ही तुम खो गए हो. भीतर गहरे में अंधकार है, इसलिए आधार नहीं देख पाते; तुम सतह के अलावा और कुछ नहीं देख पाते. ये विधियां साहसी और हिम्मतवर बनाने के लिए हैं, ताकि पकड़ को छोड़कर स्वयं के भीतर गिर सको. जो अंधेरी, अंतहीन खाई की तरह दिखाई पड़ती है, वही तुम्हारे प्राणों की धरती है. एक बार बाहर की परिधि छोड़ दो तो केंद्रित हो जाओगे.
साभार : ओशो वर्ल्ड फाउंडेशन, दिल्ली

 

 



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