भारत की संपदा आस्था

Last Updated 18 Dec 2014 04:40:47 AM IST

भारत की विशालता एवं सम्पदा उसकी अध्यात्मवादी आस्था रही है.


धर्माचार्य पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

इसी ने उसे पृथ्वी का स्वर्ग और देवताओं का निवास स्थल कहलाने का सौभाग्य प्रदान किया और संसार के सामने हर क्षेत्र में हर दृष्टि से सम्मानित अग्रणी बना रहा. जहां आन्तरिक उत्कृष्टता होगी, वहां बाह्य सामथ्र्य एवं समृद्धि की कमी रह ही नहीं सकती. यही विशेषताएं हमें समस्त वि का मार्गदर्शन करने एवं विविध अनुदान दे सकने योग्य  बनाये रह सकीं.

संसार वालों ने अध्यात्म का प्रथम पाठ पढ़ा है और वे सांसारिक उन्नति की दिशा में बहुत आगे बढ़ गये. साहस, पुरु षार्थ, श्रम, तन्मयता, स्वावलम्बन, नियमितता, व्यवस्था, स्वच्छता सहयोग जैसे गुण अध्यात्म के प्रथम चरण में आते हैं. इन्हें यम-नियम की परिभाषा अथवा धर्म के दस लक्षणों में गिना जा सकता है. पाश्चात्य देशों ने उतना भर सीखा है.

इन्हीं गुणों ने उन्हें शारीरिक, बौद्धिक, संगठनात्मक व वैज्ञानिक उपलब्धियों से भरपूर कर दिया. जो देश कुछ समय पहले तक गई-गुजरी स्थिति में थे, उन्होंने अध्यात्म का प्रथम चरण अपनाया और आश्चर्यजनक भौतिक उन्नति में सफल हुए. यदि वे दूसरे चरण में उत्कृष्टता व आदर्शवादिता की भूमिका में प्रवेश कर सके होते, आस्तिकता व आत्मवादी तत्वज्ञान अपना सके होते, अध्यात्मवाद का अगला चरण बढ़ा सके होते तो उनकी वही महानता विकसित होती जो भारत भूमि के निवासी महामानवों में प्रस्फुटित होती रही है.

हम ईर के सत-चित-आनन्द स्वरूप अविनाशी अंग हैं अस्तु अपनी महानता को अक्षुण्ण बनाये रखें. मानव जीवन महान प्रयोजन के लिये चिरकाल उपरांत मिला है, उसका उपयोग उच्च प्रयोजनों के लिये करें. समस्त प्राणी ईर के पुत्र और भाई हैं, इसलिए उनके साथ सद्व्यवहार करें. अपने पाशविक कुसंस्कारों को हटाने के लिये संघर्ष साधना, तितीक्षा, संयम एवं तपश्चर्या का अभ्यास करें. फैली हुई दुष्प्रवृत्तियों को हटाने का पुरुषार्थ कर आत्मबल विकसित करें.

आदर्श जीवन जीकर दूसरों के लिए प्रकाश प्रदान करने वाले उज्ज्वल नक्षत्र सिद्ध हों. उन विचारों से ओत-प्रोत रहें जिनसे शांति मिले. इन्हीं आस्थाओं को हृदयंगम कराने के लिये सारा धर्म कलेवर खड़ा किया है. समस्त कर्मकांडों के पीछे इन्हीं आस्थाओं को जीवन में उतारने का मनोवैज्ञानिक उद्देश्य छिपा है. आवश्यकता है इन तथ्यों को समझने और जीवन में उतारने की दिशा में तत्परता बरतने की.
(गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज, हरिद्वार)



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