समता ही है योग
संतुलन, संगीत. दो के बीच चुनाव नहीं, दो के बीच समभाव. विरोधों के बीच चुनाव नहीं, अविरोध. दो अतियों के बीच, दो पोलेरिटीज के बीच, दो ध्रुवों के बीच पसंद-नापसंद नहीं, राग-द्वेष नहीं, साक्षी भाव.
धर्माचार्य आचार्य रजनीश ओशो |
समता का अर्थ ठीक से समझ लेना जरूरी है, क्योंकि कृष्ण कहते हैं, वही योग है. समत्व कठिन है बहुत. चुनाव सदा आसान है. मन कहता है, इसे चुन लो. जिसे चुनते हो, उससे विपरीत को छोड़ दो.
कृष्ण कहते हैं, चुनो ही मत. दोनों समान हैं, ऐसा जानो. और जब दोनों समान हैं, तो चुनेंगे कैसे? चुनाव तभी तक हो सकता है, जब असमान हों. एक ही श्रेष्ठ, एक ही अश्रेष्ठ. एक में दिखता हो शुभ, एक में दिखता हो अशुभ. कहीं न कहीं कोई तुलना का उपाय हो, कंपेरिजन हो, तभी चुनाव है. अगर दोनों ही समान हैं, तो चुनाव कहां? चौराहे पर अगर सभी रास्ते समान हैं, तो जाना कहां? चुनेंगे कैसे? खड़े हो जाएंगे. लेकिन अगर एक रास्ता ठीक है और एक गलत, तो जाएंगे. गति होगी. जहां भी असमान दिखा, तत्काल चित्त यात्रा पर निकल जाता है- दि वेरी मोमेंट.
आप अगर एक क्षण चौरस्ते पर खड़े भी होते हैं, तो यह चुनने के लिए कि कौन से रास्ते से जाऊं! अगर एक क्षण विचार भी करते हैं, तो चुनाव के लिए कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है! किससे सफलता मिलेगी, किससे असफलता मिलेगी! क्या होगा लाभ, क्या होगी हानि! अगर चिंतन भी करते हैं कभी तो चुनाव के लिए. नट को देखा है रस्सी पर! झुकता भी दिखता है लेकिन झुकने के लिए नहीं. आपने कभी खयाल किया है कि बाएं वह तभी झुकता है, जब दाएं गिरने का डर पैदा होता है. दाएं तब झुकता है, जब बाएं गिरने का डर पैदा होता है. वह दाएं गिरने के डर को बाएं झुककर बैलेंस करता है. बाएं और दाएं के बीच, राइट और लेफ्ट के बीच वह पूरे वक्त अपने को सम कर रहा है.
निश्चित ही, यह समता जड़ नहीं है, जैसा कि पत्थर पड़ा हो. जीवन में भी समता जड़ नहीं है. जीवन की समता भी नट जैसी समता है- प्रतिपल जीवित है, सचेतन है, गतिमान है. दो तरह की समता हो सकती है. एक आदमी सोया है गहरी सुषुप्ति में, वह भी समता को उपलब्ध है क्योंकि वहां भी कोई चुनाव नहीं है. लेकिन सुषुप्ति योग नहीं है. एक आदमी शराब पीकर रास्ते पर पड़ा है; उसे भी सिद्धि और असिद्धि में कोई फर्क नहीं है लेकिन शराब पी लेना समता नहीं है और न ही योग है.
साभार : ओशो वर्ल्ड फाउंडेशन, नई दिल्ली
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