हर दिल में जलाएं प्रेम का दीया
एक दीपक की बाती को जलने के लिए तेल में डूबे होना चाहिए साथ ही तेल के बाहर भी रहना चाहिए. यदि बाती तेल में पूरी डूब जाये तो प्रकाश नहीं दे सकती.
श्री श्री रविशंकर (फाइल फोटो) |
जीवन भी दीपक की बाती के समान है. तुम्हें संसार में रहते हुए भी उसके ऊपर निष्प्रभावित रहना होता है. अगर तुम पदार्थ जगत में डूबे हुए हो, तो जीवन में आनन्द और ज्ञान नहीं ला पाओगे. संसार में रहते हुए भी, सांसारिक माया के ऊपर उठकर हम आनन्द और ज्ञान के ज्योति प्रकाश बन सकते हैं. इस प्रकार से ज्ञान के प्रकाश के प्रकट होने का उत्सव ही दिवाली है.
दीपावली बुराई पर अच्छाई का, अन्धकार पर प्रकाश का और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का त्योहार है. इस दिन घरों में की जाने वाली रोशनी जीवन के गहरे सत्य को भी अभिव्यक्त करती है. हरेक दिल में प्रेम और ज्ञान की लौ प्रज्ज्वलित करें और सभी के चेहरों पर सच्ची मुस्कान लायें. केवल एक ही दीप जला कर संतुष्ट न हों. हजारों दीप प्रज्वलित करें क्योंकि अज्ञान के अन्धकार को दूर करने के लिए अनेक ज्योत जलाने होंगे.
दीपावली का अर्थ है वर्तमान क्षण में जीना, अत: अतीत का पछतावा और भविष्य की चिंता छोड़ वर्तमान में जिएं. दीपावली की मिठाइयों और उपहारों के आदान प्रदान के पीछे भी एक मनोवैज्ञानिक पहलू है. पुरानी गलतफहमी की कड़वाहट छोड़ संबन्धों को मधुर बनाते चलो. परमात्मा ने जो कुछ हमें दिया है, उस प्रसाद को सबके साथ बांटना है, क्योंकि जितना बांटेंगे उतना उसकी कृपा और बरसती है.
सही मायने में यही दीपावली का उत्सव है. उत्सव का और एक अर्थ है- अपने मतभेदों को मिटाकर अद्वैत आत्मा की ज्योति से अपने सच्चिदानन्द स्वरूप में विश्राम करना. दिव्य समाज की स्थापना के लिए हर दिल में ज्ञान व आनन्द की ज्योत जलानी होगी. और वह तभी संभव है यदि सब एक साथ मिलकर ज्ञान का उत्सव मनायें. जब सच्चा ज्ञान उदित होता है तब उत्सव होता है.
उत्सव में सजगता बनाए रखने के लिये, हमारे ऋषियों ने प्रत्येक उत्सव को पावन बनाकर पूजा विधियों के साथ जोड़ दिया. इसलिए दिवाली भी पूजा का समय है. जो ज्ञान में नहीं हैं उनके लिए वर्ष में एक बार ही दिवाली आती है, किंतु जो ज्ञानी हैं उनके लिये प्रत्येक दिन, प्रतिक्षण दिवाली है. इस दिवाली को ज्ञान के साथ मनाएं और मानवता की सेवा का संकल्प लें.
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