प्रबलता और अधीनता

Last Updated 01 Oct 2014 12:24:55 AM IST

कई लोग किसी और के आधीन काम करना नहीं चाहते, चाहे वह उनके व्यवसाय से संबंधित हो, कम्पनी से हो या स्वैच्छिक सेवा से हो.


धर्माचार्य श्री श्री रविशंकर

एक साधारण धारणा है, कि जब तुम किसी के नीचे काम करते हो तुम्हें जवाबदेह होना पड़ता है और तुम अपनी स्वतंत्रता खो देते हो. इसीलिए कई लोग व्यापार करना पसन्द करते हैं ताकि वे स्वयं मालिक हो. परंतु व्यापार में तुम्हें कई लोगों को उत्तर देना पड़ता है. यदि तुम एक व्यक्ति के प्रति उत्तरदायी नहीं हो सकते तो अनेक व्यक्तियों के प्रति कैसे उत्तरदायी हो सकते हो? यह विरोधाभास है.

वास्तव में तुम्हें और अधिक कर्त्तव्यबद्ध होना पड़ता है बनिस्पत एक बॉस के साथ. किसी के नीचे काम करने से इंकार करना तुम्हारी कमजोरी की निशानी है न कि प्राबल्य की. एक प्रबल व्यक्ति किसी के भी नीचे काम करने में असहज महसूस नहीं करता, क्योंकि वह अपनी सामर्थ्य जानता है. वह एक कमजोर और निष्क्रिय व्यक्ति है, जो किसी और के नीचे काम करना पसन्द नहीं करता क्योंकि वे अपनी क्षमता को पहचानते ही नहीं हैं. वे न ही व्यापार में और न ही अन्य किसी व्यवसाय में सफल हो सकते हैं.

यही बात सामाजिक सेवा के क्षेत्र के लिए सत्य है. प्राय: स्वयं सेवक किसी और के नीचे काम करना नहीं चाहते. यह केवल उनकी कमजोरी दर्शाती है. इस वृत्ति के कारण वे बहुत कम उपार्जित कर पाते हैं. वह व्यक्ति जो अन्दर से डरपोक और कमजोर होता है, उसको बुद्धिमान व्यक्ति के नीचे भी कम करने में असुविधा होती है, परंतु वह व्यक्ति जो अपनी सामर्थ्य को समझता है, एक मूर्ख व्यक्ति के नीचे भी प्रभावकारी तरीके से कार्य कर सकता है.

जब तुम अपने सामर्थ्य को जानते हो तब तुम बुद्धि और युक्ति से हर एक हानि को लाभ में परिवर्तित कर सकते हो. यदि तुम्हें किसी के नीचे काम करने में असुविधा महसूस होती है, इससे प्रतीत होता है कि तुम्हारे अन्दर प्राबल्य की आवश्यकता है. तुम्हारी स्वतंत्रता को तुमसे कोई नहीं ले सकता, यह जानना ही प्रबलता है. और जब तुम्हें अपने प्रावल्य की स्थिरता का अनुभव होता है, तब तुम्हें किसी के भी नीचे कार्य करने में कोई आपत्ति नहीं होती.

संपादित अंश ‘सच्चे साधक के लिए एक अंतरंग वार्ता’ से साभार



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