स्वाधीनता और अनुशासन

Last Updated 24 Sep 2014 12:19:55 AM IST

स्वाधीनता और अनुशासन एक-दूसरे के विपरीत हैं और पूरक भी. रक्षा का उद्देश्य है स्वाधीनता का बचाव. पर क्या सुरक्षा में स्वाधीनता है?


धर्माचार्य श्री श्री रविशंकर

क्या सैनिकों को स्वाधीनता है? नहीं. सभी सैनिक नियमों में बिल्कुल बंधे हैं.

उन्हें यदि बांया कदम उठाने का आदेश मिले तो वे दाहिना कदम नहीं उठा सकते. उनके कदम नपे-तुले होते हैं, यहां तक कि वे स्वाभाविक चाल भी नहीं चल सकते. इस ‘रक्षा’ में बिल्कुल भी स्वाधीनता नहीं है. जिनको स्वयं बिल्कुल भी आजादी नहीं, वे ही देश की स्वाधीनता की रक्षा करते हैं.

अनुशासन-हीन स्वाधीनता सेना-विहीन राष्ट्र के समान है. अनुशासन स्वाधीनता की रक्षा करता है. ये दोनों साथ-साथ चलते हैं. तुम्हें कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है और यही संयम तुम्हें स्वाधीनता देता है. यह तुम पर निर्भर है कि तुम अपना ध्यान स्वाधीनता पर देते हो या अनुशासन पर. यही तुम्हें सुखी या दु:खी बनाता है.

चारदीवारी को अपने ही स्थान पर रहने दो. यदि सारी जमीन पर चारदीवारी बना दोगे, तो घर कहां बनेगा? लेकिन एक अच्छी चारदीवारी जमीन की रक्षा करती है. प्रेम और भय दो संभावनाएं हैं जो सही रास्ते पर लाते हैं. जीवन-उन्नति के लिए धर्मों ने भय को विशेष स्थान दिया है.

बच्चा जब छोटा होता है, उसे मां का शत-प्रतिशत समय और प्यार मिलता है. तब शिशु के मन में भय नहीं होता. जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, आत्मनिर्भर होता है, तब सावधान हो जाता है. प्रकृति उस समय उसके मन में भय की भावना जमा देती है. आजादी के साथ बच्चा अपने कदम सावधानी से बढ़ाता है. एक परम आनन्द की, पूर्ण स्वतंत्रता की अवस्था है, जिसका वर्णन अद्वैतवाद में है. लेकिन अद्वैत ज्ञान का बड़ा दुरुपयोग हुआ है.

लोगों ने सुविधा और गलत धारणाओं के आधार पर इसकी व्याख्या की है. मन में सजगता, हृदय में प्रेम और कर्मों में पवित्रता होनी चाहिए. स्वाधीनता खोने का भय प्रतिरक्षा को जन्म देता है. प्रतिरक्षा का उद्देश्य है भय दूर करना. इस पथ पर ज्ञान ही स्वाधीनता है और रक्षक भी.

संपादित अंश ‘सच्चे साधक के लिए एक अंतरंग वार्ता’ से साभार



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