हर युग की जरूरत कृष्ण-चेतना
कृष्ण जैसी चेतना के जन्म के लिए सभी समय, सभी काल, सभी परिस्थितियां काम की हो सकती हैं.
धर्माचार्य आचार्य रजनीश ओशो |
कोई काल, कोई परिस्थिति कृष्ण जैसी चेतना के पैदा होने का कारण नहीं होती है. हम सदा ऐसा सोचते रहे हैं कि कृष्ण शायद इसलिए पैदा होते हैं कि युग बहुत बुरा है, इसलिए पैदा होते हैं कि बहुत दुर्दिन हैं. इस समझ में बुनियादी भूल है. इसका मतलब यह हुआ कि कृष्ण जैसे व्यक्ति एक कार्य-कारण की श्रृंखला में पैदा होते हैं. इसका मतलब हुआ कि हमने कृष्ण के जन्म को भी यूटिलिटेरियन कर लिया, उपयोगिता में ढाल दिया. इसका यह भी मतलब हुआ कि कृष्ण जैसे व्यक्ति को भी हम अपनी सेवा के अथरें में ही देख सकते हैं.
अगर रास्ते के किनारे फूल खिले, तो राह से गुजरने वाला सोच सकता है कि मेरे लिए खिल रहा है, मेरे लिए सुगंध दे रहा है. हो सकता है वह अपनी डायरी में लिखे कि मैं जिस रास्ते से गुजरता हूं, मेरे लिए फूल खिल जाते हैं. लेकिन फूल निर्जन रास्तों पर भी खिलते हैं. फूल अपने लिए खिलते हैं. किसी दूसरे को सुगंध मिल जाती है, यह बात दूसरी है.
कृष्ण जैसे व्यक्ति भी किसी के लिए पैदा नहीं होते. अपने आनंद से जन्मते हैं. दूसरों को सुगंध मिल जाती है, यह बात दूसरी है. और ऐसा कौन सा युग है, जिसमें कृष्ण जैसा व्यक्ति पैदा हो तो हम उसका कोई उपयोग न कर सकें? उसकी सभी युगों में जरूरत है. सभी युग पीड़ित हैं, सभी युग दुखी हैं. तो कृष्ण जैसा व्यक्ति तो किसी भी क्षण में उपयोग हो जाएगा.
कृष्ण जैसे व्यक्तियों को यूटिलिटेरियन, उपयोगिता की भाषा में सोचना ही गलत है. लेकिन हम हर चीज को उपयोग में सोचते हैं. नरुपयोगी का हमारे लिए कोई मूल्य ही नहीं है, परपजलेस का हमारे लिए कोई अर्थ ही नहीं है. आकाश में बादल चलते हैं तो सोचते हैं शायद हमारे खेतों में वष्रा के लिए चलते हैं. हाथों पर बंधी घड़ियां सोच सकें, तो शायद यही सोचेंगी कि हम बंध सकें, इसलिए यह आदमी पैदा हुआ है.
निश्चित ही चश्मे सोच सकें, तो सोचेंगे कि हम लग सकें, इसलिए आंखें पैदा हुई हैं. लेकिन वे सोच नहीं सकते, इसलिए मजबूरी है. आदमी सोच सकता है तो वह हर चीज को इगोसेंट्रिक कर लेता है, अपने अहंकार के केंद्र पर कर लेता है. वह कहता है, सब मेरे लिए है. कृष्ण जन्मते हैं तो मेरे लिए, बुद्ध जन्मते हैं तो मेरे लिए, फूल खिलते हैं तो मेरे लिए. आदमी के लिए सब चल रहा है. आकाश में चांद-तारे चलते हैं, वे भी हमारे लिए. सूरज निकलता है, वह भी हमारे लिए. यह दूसरी बात है कि सूरज के निकलने से हम रोशनी ले लेते हैं, लेकिन हमें रोशनी देने को सूरज नहीं निकलता है.
साभार : ओशो वर्ल्ड फाउंडेशन
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