आत्मा का अस्तित्व

Last Updated 19 Sep 2014 12:57:15 AM IST

चाहे कोई वैदिक ज्ञान का अनुगामी हो या आधुनिक विज्ञान का, वह शरीर में आत्मा के अस्तित्व को नकार नहीं सकता.


धर्माचार्य स्वामी प्रभुपाद

भगवान ने स्वयं भगवद्गीता में आत्मा के इस विज्ञान का विशद वर्णन किया है. भौतिक शरीर स्वभाव से नाशवान है यह तत्क्षण नष्ट हो सकता है और सौ वर्ष बाद भी. यह केवल समय की बात है. इसे अनन्त काल तक बनाए रखने की कोई संभावना नहीं है. किंतु आत्मा इतना सूक्ष्म है कि इसे मारना तो दूर रहा, शत्रु देख भी नहीं सकता. यह इतना सूक्ष्म है कि इसे मापने की कोई सोच भी नहीं सकता. अत: दोनों ही दृष्टि से शोक का कोई कारण नहीं है. क्योंकि जीव जिस रूप में है, न तो उसे मारा जा सकता है और न ही शरीर को कुछ समय तक या स्थायी रूप से बचाया जा सकता है.

पूर्ण आत्मा के सूक्ष्म कण अपने कर्म के अनुसार ही यह शरीर धारण करते हैं अत: धार्मिक नियमों का पालन करना चाहिए. वेदांत सूत्र में जीव को प्रकाश बताया गया है क्योंकि वह परम प्रकाश का अंश है. जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश सारे ब्रह्मांड का पोषण करता है, उसी प्रकार आत्मा के प्रकाश से इस भौतिक देह का पोषण होता है. जैसे ही आत्मा इस भौतिक शरीर से बाहर निकल जाता है, शरीर सड़ने लगता है. अत: आत्मा ही शरीर का पोषक है. शरीर अपने आप में महत्वहीन है. इसीलिए अर्जुन को उपदेश दिया गया है कि वह युद्ध करे और भौतिक शारीरिक कारणों से धर्म की बलि न होने दे.

आत्मा इतनी सूक्ष्म है कि इसे किसी तरह के भौतिक हथियार से मार पाना असंभव है. न ही जीवात्मा अपने आध्यात्मिक स्वरूप के कारण बध्य है. जिसे मारा जाता है या जिसे मरा हुआ समझा जाता है, वह केवल शरीर होता है. किंतु इसका तात्पर्य शरीर के वध को प्रोत्साहित करना भी नहीं है. वैदिक आदेश है- ‘मा हिंस्यात सर्वा भूतानि.’ यानी किसी भी जीव की हत्या न करो. न ही ‘जीवात्मा अवध्य है’ का अर्थ यह है कि पशु हिंसा को प्रोत्साहन दिया जाए. किसी भी जीव के शरीर की अनधिकार हत्या करना सर्वथा निंदनीय है. और राज्य तथा भगवद्विधान के द्वारा दंडनीय है. रही अर्जुन की बात तो उसे तो धर्म के नियमानुसार मारने के लिए नियुक्त किया जा रहा था.

(प्रवचन के संपादित अंश श्रीमद्भगवद्गीता से साभार)



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