केवल औचित्य का मार्ग अपनाएं

Last Updated 18 Sep 2014 12:32:46 AM IST

महत्ता इस बात की नहीं कि सफलता कितनी बड़ी पाई गई. गरिमा इस बात की है कि उसे किस प्रकार पाया गया.


धर्माचार्य पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

अनीति का मार्ग अपनाकर कोई सफलता अधिक बड़ी मात्रा में और अधिक जल्दी पाई जा सकती है, जबकि नीति का मार्ग अपनाकर चलने से देर भी लगेगी और मात्रा भी सीमित रहेगी. अधीर व्यक्ति जल्दी और अधिक पाने की बात सोचते हैं और इसके लिए किसी भी रास्ते कुछ भी कर गुजरने के लिए आतुर रहते हैं. संभव है कि तात्कालिक लाभ की दृष्टि से वे सफल भी रहें और बुद्धिमान भी समझे जाएं, पर अंतत: यह सौदा बहुत महंगा पड़ता है. ऐसी उपलब्धियां स्वयं ही पानी के बुलबुले की तरह नष्ट हो जाती हैं और उस उपार्जनकत्र्ता को भी साथ ले डूबती हैं.

इतिहास के पृष्ठों पर ऐसे अनेक नाम हैं जो आंधी-तूफान की तरह उभरे और झाग की तरह तली में बैठ गए. रावण, कंस, हिरण्यकश्यप, चंगेजखां, नादिरशाह, सकिंदर, हिटलर आदि के कितने नाम ऐसे हैं, जिन्हें अपने समय का सफल मनुष्य कहा जा सकता है. उनकी सफलताएं अपेक्षाकृत अधिक भी थीं और बड़ी भी, किंतु उनसे क्या बना? सफलताएं उन्हें महंगी पड़ीं. जो कमाया था वह चला गया, अपना भी दुखद अंत हुआ. आतंकवाद के आधार पर उपार्जित किया गया बड़प्पन देर तक न टिका, बल्कि उसका स्थान चिरस्थायी अपयश ने ले लिया. उत्पीड़ितों और शोषितों का करुण क्रंदन अनंत काल तक उनकी आत्मा को नोंचता-कोंचता रहेगा. तस्कर, डाकू और छली बात की बात में प्रचुर धन प्राप्त कर लते हैं, पर वह धन उनकी सुख-शांति में तनिक भी सहायता कर सका हो, ऐसा कभी नहीं देखा गया.

सफलताएं अपने आप में कोई बहुत बड़ी बात नहीं है. महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सफलता किस रास्ते, किस उपाय से प्राप्त की गई. वस्तुत: वह उपाय या मार्ग ही प्रशंसा या निंदा का केंद्र बिंदु होता है. इसी के आधार पर व्यक्तित्व और कृतित्व की परख होती है. महत्त्वपूर्ण बात एक ही है कि हम जिस भी दिशा में चलें, रास्ता न्यायोचित और मानवीय मर्यादाओं के अनुरूप होना चाहिए. औचित्य को अपनाए रहकर असफल रहना उससे कहीं अच्छा है जिसमें अनीति अपनाकर सफलता प्राप्त की जाती है.

गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज हरिद्वार



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