प्रतिष्ठा और सम्मान सुनहरा पिंजरा
सम्मान स्वतंत्रता को कम करता है. प्रसिद्धि तुम्हारे सम्मान और सद्गुण स्वतंत्रता को सीमाबद्ध कर सकते हैं.
धर्माचार्य श्री श्री रविशंकर |
कोई भी एक अच्छे व्यक्ति से गलत करने की आशा नहीं रखता. इसलिए जितने तुम अच्छे होते हो, लोगों की उतनी ही तुमसे उच्चतर अपेक्षाएं होती हैं.
तब तुम अपनी स्वतंत्रता खो देते हो और तुम्हारे सद्गुण और अच्छे कृत्य एक सुनहरे पिंजरे के समान हो जाते हैं. तुम अपने अच्छे कृत्यों में फंस जाते हो क्योंकि हर एक व्यक्ति एक अच्छे व्यक्ति से अधिक अपेक्षा करता है और एक खराब व्यक्ति से कोई भी कुछ आशा नहीं रखता.
अधिकतर लोग इस सम्मान और प्रतिष्ठा के पिंजरे में जकड़ जाते हैं. वे मुस्कुरा नहीं सकते. वे निरंतर अपनी प्रतिष्ठा और सम्मान बनाए रखने के लिए चिंतित रहते हैं. अपने जीवन से भी अधिक उनके लिए इसका महत्व हो जाता है.
केवल प्रतिष्ठा और सम्मान बनाए रखने के लिए ही कुछ अच्छा करना व्यर्थ है. निर्धनता की अपेक्षा प्रतिष्ठा और सम्मान जीवन को अधिक दु:खमय बना सकते हैं. कुछ लोग प्रसिद्धि की आकांक्षा करते हैं परंतु वे यह बिल्कुल नहीं जानते कि वे एक पिंजरे को आमंतण्रदे रहे हैं.
बिना घुटन के सम्मानित रहना एक कला है. केवल ज्ञानी ही यह समझ सकते हैं. ज्ञानी का सम्मानित होना स्वाभाविक है, परंतु यदि नहीं भी होता तब भी उसे कोई परवाह नहीं होती. प्रतिष्ठा और प्रसिद्धि होने पर भी वह ऐसे रहता है जैसे उसके पास कुछ भी न हो. एक ज्ञानी किसी भी प्रसिद्धि को बिना किसी घुटन के संभाल सकता है.
समाज में अच्छा काम करने से व्यक्ति को सम्मान प्राप्त होता है, बाद में प्रतिष्ठा और सम्मान में जब उसे आनंद आने लगता है तब उसकी स्वतंत्रता खत्म हो जाती है. प्रश्न कर सकते हो कि तब अपनी स्वतंत्रता कैसे बनाए रखेंगे? उत्तर में यही कहना है कि एक बच्चे के जैसे बनकर, इस संसार को एक स्वप्न, एक बोझ या एक चुटकुला मान कर.
संपादित अंश ‘सच्चे साधक के लिए एक अंतरंग वार्ता’ से साभार
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