शरणागत होने का ज्ञान
अर्जुन को गुह्यज्ञान (ब्रह्मज्ञान) तथा गुह्यतरज्ञान (परमात्मा ज्ञान) प्रदान करने के बाद भगवान अब उसे गुह्मतम ज्ञान प्रदान करने जा रहे हैं- यह है भगवान के शरणागत होने का ज्ञान.
धर्माचार्य स्वामी प्रभुपाद |
उन्होंने कहा- सदैव मेरा चिंतन करो. यह सार सामान्यजन की समझ में नहीं आता. लेकिन जो कृष्ण को सचमुच अत्यंत प्रिय है, कृष्ण का शुद्ध भक्त है, वह समझ लेता है. सारे वैदिक साहित्य में यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण आदेश है. इस प्रसंग में जो कुछ कृष्ण कहते हैं, वह ज्ञान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंश है और इसका पालन न केवल अर्जुन द्वारा होना चाहिए, अपितु समस्त जीवों द्वारा होना चाहिए.
ज्ञान का गुह्यतम अंश है कि मनुष्य कृष्ण का शुद्ध भक्त बने, सदैव उन्हीं का चिंतन करे और उन्हीं के लिए कर्म करे. जीवन को इस प्रकार ढालना चाहिए कि कृष्ण का चिंतन करने का सदा अवसर प्राप्त हो. मनुष्य इस प्रकार कर्म करे कि उसके सारे नित्यकर्म कृष्ण के लिए हों. वह अपने जीवन को इस प्रकार व्यवस्थित करे कि चौबीसों घंटे कृष्ण का ही चिंतन करता रहे. भगवान की यह प्रतिज्ञा है कि जो इस प्रकार कृष्णभावनामय होगा, वह निश्चित रूप से कृष्णधाम को जाएगा जहां वह साक्षात कृष्ण के सान्निध्य में रहेगा. यह गुह्यतम ज्ञान अर्जुन को इसीलिए बताया गया क्योंकि वह कृष्ण का प्रिय मित्र है. जो कोई भी अर्जुन के पथ का अनुसरण करता है, वह कृष्ण का प्रिय सखा बनकर अर्जुन जैसी ही सिद्धि प्राप्त कर सकता है.
ये शब्द इस बात पर बल देते हैं कि मनुष्य को अपना मन उस कृष्ण पर एकाग्र करना चाहिए जो दोनों हाथों से वंशी धारण कि ए, सुंदर मुखवाले तथा अपने बालों में मोर पंख धारण किए हुए सांवले बालक के रूप में हैं. मनुष्य को परम ईश्वर के आदि रूप कृष्ण पर अपने मन को एकाग्र करना चाहिए. उसे अपने मन को भगवान के अन्य रूपों की ओर नहीं मोड़ना चाहिए. भक्त को चाहिए कि अपने मन को उस एक रूप पर केंद्रित करे जो अर्जुन के समक्ष था. कृष्ण के रूप पर मन की यह एकाग्रता ज्ञान का गुह्यतम अंश है जिसका प्रकटीकरण अर्जुन के लिए किया गया, क्योंकि वह कृष्ण का अत्यंत प्रिय सखा है.
(प्रवचन के संपादित अंश श्रीमद्भगवद्गीता से साभार)
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