सहज हो प्रेम की अभिव्यक्ति

Last Updated 30 Jul 2014 12:31:14 AM IST

हमारी परेशानी क्या है कि हम अपने प्रेम को इतना ज्यादा प्रदर्शित कर देते हैं कि थोड़े समय बाद लगता है कि हमारे पास और कुछ देने के लिये है ही नहीं.


धर्माचार्य श्री श्री रविशंकर

अब सब खाली हो गया. यदि प्रेम अत्यधिक प्रदर्शित कर दिया जाये तो इसकी आयु छोटी हो जाती है. यह एक बीज के समान है.

आपको इसे उगाना होता है, धरती के भीतर. तब यह आपके कायरें में प्रकट होने लगता है. इसे बार-बार कहकर, ‘मैं तुमसे प्यार करता हूं, मैं तुमसे प्यार करता हूं,’ आपने सब नष्ट कर दिया. सच्ची अंतरगता यही है कि आप पहले से अंतरग हो इस बारे में निश्चिंत हो. आप दूसरों को यह कह कर विास नही दिलातें हो कि आप उनसे गहरे जुड़े हो.

आप अपने भाव बार-बार प्रकट नहीं करते हो. अपने प्रेम को बार-बार सिद्ध करना ही सबसे बड़ी समस्या है. आपको किसी को विास दिलाने की आवश्यकता नहीं है. यदि वे समझते हैं तो समझ जाएंगे.

आप अपनी अंतरंगता बताने के लिए जितने चिंतित होते हो, उतनी अंतरंगता नष्ट हो जाती है. आप  अंतरंगता को अनुभव होने दें. अपने प्रेम को बताने की जल्दबाजी न दिखायें.

उन्हें समझने दें कि आप उनके हो और वे आपके हैं. अन्य लोगों को समझाने का प्रयास न करें कि आप उनसे प्रेम करतें हैं.

यह भी शक न करें कि वे आपसे प्रेम करते हैं या नहीं. इसे स्वाभाविक ले लें, ‘हां, हर कोई मुझसे प्यार करता है.’ तब जानते हो क्या होगा? प्रेम का अभाव और शक दोनों समाप्त हो जाएंगे.

यह एक रहस्य है. एक अच्छा व्यक्ति भी आपके कर्मों या स्पंदनों के कारण आपको गलत शब्द कह सकता है एक गलत व्यक्ति भी आपके अच्छे कर्मों के कारण आपकी सहायता आरंभ कर देता है.

वास्तव में यह आप स्वयं हैं जो आहत होते हैं. सही अंतरगता वास्तव में वही है जो समझ सके कि अन्य कोई व्यक्ति तो है ही नहीं. जब मन इस अद्वैत में आ जाता है तो समाप्त हो जाता है.

अद्वैत पर केंद्रित होना विकास का पथ है. तब यह आपके मन और दिल के भारीपन को दूर कर देता है. तब प्रेम बहता है. यह प्रेम दिव्य प्रेम है, वैसे ही जैसे एक बड़ा सा सुंदर पुष्प पूरा खिला हुआ हो.



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