संकल्प तो बाधा बनेगा
शिष्य जब गुरु के पास आता है तो जैसा है, वैसा उसे मरना होगा.
धर्माचार्य आचार्य रजनीश ओशो |
और जैसा होना चाहिए, वैसा होना होगा. जब शिष्य गुरु के पास आता है तो बीमारियों का जोड़ है, उपाधियों का जोड़ है. गुरु की औषधि बीमारियों को मिटा देगी. जैसा शिष्य आता है अहंकार से भरपूर, वह अहंकार तो सिर्फ बीमारियों का बंडल है. जब बीमारियां हटती हैं, वह अहंकार भी मर जाता है. फिर जो शेष बचता है, वह तो कुछ ऐसा है, जिसका शिष्य को पता ही नहीं था. वह तो मरने के बाद ही पता चलता है. अहंकार की मृत्यु के बाद ही आत्मा का बोध होता है.
शायद शिष्य आता है अपने प्रयोजन से. वह शायद महाजीवन की तलाश में आता है. वह सोचकर आता भी नहीं कि गुरु के पास मरना होगा, मिटना होगा. धीरे-धीरे, इंच-इंच गलना होगा, बिखरना होगा. वह तो किसी लोभ से आया था. वह तो शायद इसलिए आया था कि संसार की वासना को ही और थोड़ा गति मिल जाए, और थोड़ी शिक्त मिल जाए. कामना के जगत में और थोड़ा बलशाली हो जाऊं, जीवन के संघर्ष में और थोड़ा सकंल्प मिल जाए.
मेरे पास लोग आते हैं. वे कहते हैं, सकंल्प-शक्ति की कमी है- विल-पावर. आप कृपा करें, संकल्प-शक्ति दे दें. मैं पूछता हूं, संकल्प-शक्ति का करोगे क्या? संकल्प-शक्ति का उपयोग संघर्ष में है, संसार में है. मोक्ष में तो है नहीं. अशांत होना हो तो संकल्प-शक्ति की जरूरत है. शांत होना हो तो विसर्जित करो. जो थोड़ी-बहुत है, वह भी विसर्जित करो. उसे भी डाल आओ गंगा में. उससे भी छुटकारा लो. संकल्प तो बाधा बनेगा, समर्पण मार्ग है.
लोग आते हैं और कहते हैं, कुछ आशीर्वाद दें. जीवन में बड़ी निराशा है. आशा का दीया जला दें. मैं उनसे कहता हूं, तुम गलत जगह आ गए. यहां तो आशा के दीये बुझाए जाते हैं. तुम आते हो शायद निराशा मिटाने. तुम आते हो यहां कि थोड़ा बल मिल जाए और संसार में जाकर फिर तुम जूझ पड़ो. शायद अभी हार गए थे. शायद अभी जीत नहीं पाते थे. शायद अभी बलशाली लोगों से संघर्ष हो रहा था और तुम कमजोर पड़ते थे.
और बल लेकर, और शक्ति लेकर, और ऊर्जा लेकर उतर जाओ जीवन के युद्ध में. लेकिन तब तुम गलत जगह आ गए. अगर तुम गुरु के पास गए तो गलत जगह गए. इसके लिए तो तुम्हें झूठा गुरु चाहिए. इसलिए झूठे गुरु चलते हैं. झूठे सिक्के इसीलिए चलते हैं क्योंकि तुम जो चाहते हो, उसे वे पूरा करने का आासन देते हैं. वह कभी पूरा होता है या नहीं, यह सवाल नहीं है, आासन काफी है और उसमें ही तुम लुटते हो.
आभार: ओशो वर्ल्ड फाउंडेशन
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