श्रीकृष्ण ने दिया था वरदान, वसंत पंचमी के दिन होगी सरस्वती की आराधना
माघ शुक्ल पंचमी को काम सखा ऋतुराज बसंत का आगमन होता है. इनके आगमन के फलस्वरूप आम के वृक्ष पर बौर आ जाता है.
श्रीकृष्ण ने सरस्वती को दिया था ये वरदान |
बसंत पंचमी - 12 फरवरी 2016
गुलाब मालती इत्यादि पर पुष्प पल्लवित होने लगते हैं. भौरों की गुंजार के साथ ही आम पर कोयल कुहूकने लगती है. जौ, गेहूं पर बालें भी इसी दौरान आने लगती हैं.
वसंत पंचमी अथवा श्री पंचमी को विद्या की देवी श्री सरस्वती का जन्म दिन भी है अतः इस दिन को सरस्वती पूजा अथवा सरस्वती दिवस भी कहा जाता है.
सरस्वती ऋगवेद की पवित्र नदी के रूप में प्रसिद्ध हैं. देश का ब्रह्मावर्त भाग सरस्वती और हृषद्वती नदियों के बीच का प्रसिद्ध भाग था जो वैदिक ज्ञान और यज्ञ संबंधी कर्मकांड के लिए प्रसिद्ध रहा. ब्राह्मण काल में सरस्वती नदी देवता तथा वाक्देवता के रूप में प्रसिद्ध रहीं.
पुराणकाल में यह ब्रह्मा की मानस जाया अथवा भार्या के रूप में प्रसिद्ध होकर अनेक कलाओं की अधिष्ठात्री देवी बनीं. इनका विष्णु पत्नी, लक्ष्मी की सपत्नी, वीणा पुस्तक धारिणी, कमलासना तथा हंसवाहिनी के रूप में उपासना के संकेत मिलते हैं. इस प्रकार यह देवी निरंतर विचार चिंतन के विकास क्रम को पार करते हुए अपने विराट रूप में प्रतिष्ठित हुई हैं. नित नवीना तथा प्रेरणा स्त्रोत रही है.
ब्रह्म वैवर्त पुराण के 'गणेश खण्ड' में बुद्धि के देवता गणेश और कला विद्या की देवी सरस्वती की पूजा का वर्णन मिलता है. विद्या की देवी सरस्वती के पूजन का यह पर्व मुख्यतः उत्तर भारत (बिहार बंगाल तथा कश्मीर) तथा दक्षिण के तमिलनाडु क्षेत्र में भी उल्लासपूर्वक मनाया जाता है. इस दिन प्रकाशित ग्रंथ तथा हस्त लिखित ग्रंथों को एक स्थान पर रखकर विधि विधान से पूजा की जाती है. संगीत प्रेमी अपने वाद्ययंत्रों तथा शिल्पी कारीगर अपने औजारों का भी पूजन करते हैं.
इस दिन वासन्ती वस्त्र धारण किये जाते हैं. देवी सरस्वती की पूजा कर रेवड़ी, केले, किसार तथा पीले मीठे चावल का भोग लगाया जाता है.
वसन्त को मदनोद्दीपक माना गया है. इस समय मन प्रमुदित रहता है अतः चरक संहिता तथा आयुर्वेद के अनुसार इस समय आनन्द विहार करना अच्छा रहता है. इसके अधिदेवता काम और रति माने गये हैं अतः इस ऋतु में काम और रति की पूजा का भी विधान है.
सरस्वती पूजा का दिन वेदाध्ययन के आरंभ का भी प्रधान समय माना गया है. वेद के अनुसार 'वसन्ते ब्राह्मणमुपनीत'. विद्या की अधिदेवता सरस्वती हैं अतः इस दिन सरस्वती तथा वेदों के रक्षक वैदिको का पूजन करना शुभ होता है.
ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती पर प्रसन्न होकर वरदान दिया था अतः विद्यार्थी, शिक्षक एवं शिक्षा प्रेमियों के लिए यह महान पर्व है. वृन्दावन में यह पर्व उत्साहपूर्वक मनाया जाता है. श्रीकृष्ण के मंदिरों की सजावट की जाती है. नवीन पल्लवों के वन्दनवार लगाये जाते हैं. श्रीकृष्ण को पीले रेशमी वस्त्र पहनाये जाते हैं. गोविन्द के समक्ष नृत्य और विभिन्न वाद्यों, वंशी, सितार, मृदंग इत्यादि के शब्द किये जाते हैं.
इस दिन भगवान गणेश, सूर्य, विष्णु तथा शिव को गुलाल लगाया जाता है. गेहूं, जौ की बालियां अर्पित की जाती हैं. किसान नये अन्न में घी गुड़ मिलकार अग्नि और पितरों को अर्पण करते हैं.
वसन्त ऋतु में प्रकृति नवीन प्रतीत होती है. मौसम का ताप संतुलित रहने से मन भी प्रसन्न रहता है. आयुर्वेद के अनुसार वसन्त में शीतकाल का कफ सूर्य की किरणों से प्रेरित होकर अग्नि को बाधित करता है, इससे अनेक रोग पैदा होते हैं. अतः कफ का निवृत्त करने के लिए खूब गाना और बोला जाता है. इससे कफ बाहर निकल जाता है. अतः इस दिन से होरी और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है.
विद्या, संगीत और बुद्धि की देवी श्री सरस्वती की आराधना से समग्र मानव जाति का कल्याण होता है. वसन्त स्वरूप कामदेव एवं रति का पूजन करने से गृहस्थ जीवन में सुख शांति बनी रहती है. देव एवं मंगल कार्यों के लिए भी यह तिथि विशेष शुभ होती है.
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