आतंकवाद से मिलकर निपटेंगे भारत-ईरान

Photos: आतंकवाद से मिलकर निपटेंगे भारत-ईरान, चाबहार सहित 12 समझौते

भारत और ईरान ने आतंकवाद, चरमपंथ से मिलकर निपटने की प्रतिबद्धता जताई और रणनीतिक चाबहार बंदरगाह के विकास के लिए महत्वपूर्ण समझौते के साथ ही 11 अन्य करारों पर दस्तखत किये. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तेहरान यात्रा के दूसरे और अंतिम दिन हुए इन समझौतों से भारत-ईरान आर्थिक भागीदारी को और बल मिला है.व्यापारिक और रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ईरान के दक्षिणी तट के चाबहार बंदरगाह के विकास के लिए भारत 50 करोड डालर मुहैया कराएगा. ईरान के दक्षिणी तट पर स्थित चाबहार भारत, अफगानिस्तान, रूसी राष्ट्रकुल (सीआईएस) देशों तथा पूर्वी यूरोप की राह के लिए एक ‘संपर्क स्थल’ की भूमिका निभाएगा. मोदी ने ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी के साथ अकेले में वार्ता करने के बाद उसके साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘हम आतंकवाद, चरमपंथ, नशीली दवाओं के व्यापार और साइबर अपराध के खतरों से निपटने के लिए हम एक दूसरे के साथ घनिष्ठता के साथ और नियमित रूप से परामर्श करने पर सहमत हुए हैं. इसके अलावा हमने क्षेत्रीय तथा सामुद्रिक सुरक्षा के लिए अपने रक्षा और सुरक्षा संस्थानों के बीच बातचीत बढ़ाने का फैसला किया है.’’ मोदी 15 साल में ईरान की द्विपक्षीय यात्रा पर जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं. उनसे पहले अटल बिहारी वाजपेयी ईरान यात्रा पर गए थे. उनकी यह यात्रा ऐसे समय हो रही है जबकि कुछ माह पूर्व ही पश्चिमी देशों ने ईरान से प्रतिबंध हटाया है. ईरान के परमाणु कार्यक्रम के बारे में पश्चिमी ताकतों से ऐतिहासिक परमाणु करार के बाद ये प्रतिबंध हटाए गए हैं. रूहानी ने आतंकवाद को क्षेत्र की सबसे बड़ी और तेजी से फैलने वाली समस्या करार देते हुए कहा कि दोनों देशों के बीच इस मुद्दे पर बात हुई है और इस बुराई पर अंकुश के लिए खुफिया सूचनाओं को साझा करने पर सहमति बनी है. रूहानी ने कहा, ‘‘इस क्षेत्र में, विशेषरूप से अफगानिस्तान, इराक, सीरिया और यमन में स्थिरता और सुरक्षा के महत्व तथा इस पूरे क्षेत्र में आतंकवाद के प्रचंड और अनियंत्रित फैलाव की समस्या को देखते हुए हुए दोनों देशों ने राजनीतिक मुद्दों पर विचार विमर्श किया. दोनों देशों ने साथ ही यह समझने का प्रयास किया कि दोनों के बीच खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान के मामले में किस तरह सहयोग किया जा सकता है और आतंकवाद तथा चरमपंथ से लड़ाई में वे कैसे एक दूसरे के और अधिक करीब आ सकते हैं तथा कैसे दोनों देश पूरे क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए योगदान कर सकते हैं.’’

 
 
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