तनु वेड्स मनु रिटर्न्‍स की समीक्षा

हंसाने और रुलाने आयी

किसी फिल्म का सीक्वेल इतना जानदार शानदार बन सकता है यह देख कर दिल में एक रोमांचकारी हलचल मच गयी. एक साधारण सी प्रेम कहानी के सीक्वेल को इतनी उंचाई पर पहुंचा दिया और इतने सारे आयाम दे दिये कि सिनेमा का एक नया मुहावरा ही पैदा हो गया. इसे ही प्रतिभा का विस्फोट कहते हैं. निर्देशक आनंद एल राय ने दो घंटे के सिनेमायी अनुभव को एक यादगार स्पर्श दे दिया. क्या तो कहानी है, क्या तो डायलॉग हैं, क्या तो करेक्टर हैं और क्या तो अभिनय है. केवल आर माधवन और कंगना ही नहीं दीपक डोबरियाल, जिमी शेरगिल और सीक्वेल में नयी एंट्री मुहम्मद जीशान अयूब ने अभिनय के नाम पर विस्मय को आकार दे दिया है. दिल्ली, हरियाणा, कानपूर की बोली बानी, रहन सहन, ठसक अंदाज और बेपरवाह मस्ती जिस अंदाज में उपस्थित हुए हैं उसे देख कर मन लरज ही तो उठा. दर्शकों ने किसी फिल्म के साथ खुद को किस कदर एकाकार किया इसका सबूत था सिनेमा हाल में बज रही दर्शकों की तालियां. नहीं यह कोई महान सिनेमा नहीं है जिसे वि इतिहास में दर्ज किया जाएगा. यह शुद्ध रूप से एक मनोरंजक, कमर्शियल और मसाला फिल्म है जिसे पूरे परिवार के साथ देख कर एक शाम सार्थक की जा सकती है. इसे करिश्माइ रोचकता के साथ बुन कर रिश्तों का ताना बाना और उनकी महीन संवेदना इस तरह से रची गयी है कि दर्शक भूल जाता है कि वह एक फिल्म देख रहा है. वह फिल्म को जीने लगता है. कंगना का दुख उसका अपना दुख है. डबल रोल वाली कंगना उर्फ कुसुम का सुख उसका अपना सुख है. आर माधवन की बेचारगी उसकी अपनी बेचारगी है. सारे के सारे चरित्र परकाया प्रवेश कर गये हैं.

 
 
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