रोशनी करने वाले कारीगरों के जीवन में अंधेरा

 रोशनी करने वाले कारीगरों के जीवन में अंधेरा, दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं

कभी उत्सवों की शान समझे जाने वाले दीपों का व्यवसाय आज संकट के दौर से गुजर रहा है. दीपावली में रोशनी करने वाले मिट्टी के कारीगर आज दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं. करवा चौथ हो या अहोई अष्टमी, दीपावली हो अथवा कोई अन्य त्योहार कुम्हार के चाक और बर्तनों के अभाव में पूरे नहीं होते. कुम्हार के चाक से बने खास दीपक दीपावली त्योहार में चार चांद लगाते हैं लेकिन बदलती जीवन शैली और आधुनिक परिवेश में मिट्टी को आकार देने वाला कुम्हार आज उपेक्षा का दंश झेल रहा है. बाजारों मे चाइनीज झालरों की धमक ने मिट्टी के दीपक की रोशनी को फीका करना शुरु कर दिया है. इसके चलते गांव में दीये बनाने वाले कुम्हारों की रोजी-रोटी पर असर पड़ा है. पहले जहां लोग मिट्टी के दीपक से घरों को रोशन करते थे. वहीं पिछले आठ-दस सालों से चाइनीज झालर और मोमबत्ती का शौक मिट्टी के दीपक को लोगों की पहुंच से दूर करने का काम कर रही हैं. इससे अधिकतर गांव के कुम्हार अब कम दीये बनाने लगे हैं.

 
 
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