इन नेताओं की जुबां से निकले तीर

इन नेताओं की जुबां से निकले तीर

इस वर्ष नेताओं की बयानबाजी ने कई बवाल मचाए और कुछ विवाद तो अदालतों के दरवाजे तक जा पहुंचे. अदालती कार्यवाही का सामना कर रहे कुछ नेताओं को राहत मिली तो कुछ को नये झमेलों से दो चार होना पड़ा. फरवरी में तत्कालीन विधि मंत्री सलमान खुर्शीद ने मुस्लिमों को आरक्षण संबंधी टिप्पणी की तो निर्वाचन आयोग ने इसे आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करार दिया. लेकिन आयोग की आपत्ति के बावजूद खुर्शीद ने फरूखाबाद में एक चुनावी रैली में कहा था कि वह मुस्लिमों के लिए आरक्षण के मुद्दे पर अपना संघर्ष जारी रखेंगे, फिर भले ही वह (निर्वाचन आयोग) उन्हें फांसी पर क्यों न लटका दे. इस पर एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए निर्वाचन आयोग ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को पत्र लिखकर खुर्शीद द्वारा कथित रूप से निर्वाचन आयोग के खिलाफ की जा रही बयानबाजी के मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की. राष्ट्रपति ने यह पत्र प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यालय को भेजा और खुर्शीद को सिंह के समक्ष सफाई देनी पड़ी. बाद में निर्वाचन आयोग के साथ टकराव को समाप्त करने का प्रयास करते हुए खुर्शीद ने घटना पर अफसोस जाहिर किया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह पर भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने मानहानि का मुकदमा ठोंका. सिंह ने गडकरी पर उनकी पार्टी के सांसद अजय संचेती के साथ कारोबारी संबंध रखने और संचेती को कोयला ब्लॉक के आवंटन के एवज में उनसे 500 करोड़ रुपये लेने का आरोप लगाया था. बहरहाल, मामले में सिंह को अदालत से जमानत मिल चुकी है.

 
 
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