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- यहां है दादी-नानियों का स्कूल ‘आजीबाईची शाला’
शुरू में स्कूल जाने में हिचकने वाली कांता अब मराठी में पढ़-लिख सकती हैं. वह कहती हैं कि शिक्षित होने से वह आत्मनिर्भर महसूस कर रही हैं. उन्होंने कहा, ‘‘शुरू-शुरू में मैं शर्माती थी और हिचकिचाती थी लेकिन जब मैंने अपनी उम्र और उससे अधिक की महिलाओं के शाला में पढ़ने आने की बात जानी तो फिर मैंने भी अपने फैसले पर आगे बढ़ी. अब मैं अपनी भाषा में पढ़-लिख सकती हूं.’ रोचक बात यह है कि कांता को उनकी बहू शीतल पढ़ाती हैं, जो स्कूल में शिक्षिका हैं.
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