...जब ख्वाजा के कासे में आ गया था 'आनासागर'

Pics: ...जब ख्वाजा के कासे में आ गया था

अजमेर में सूफी संत गरीब नवाज ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के 801वें उर्स की छठी रस्म अदा की गई, जिसमें हजारों जायरीनों ने हिस्सा लिया. शुक्रवार को रस्म के बाद जन्नती दरवाजा बंद कर दिया जाएगा. अजमेर शरीफ हिंदू मुस्लिम भाईचारे का बेमिसाल नमूना है. इस्लाम धर्म के अनुयायी मक्का के बाद ख्वाजा साहब को मानते हैं इसलिए इसे भारत का मक्का कहते हैं. उर्स के 6 दिनों में लाखों लोग देश-विदेश से जियारत करने के लिए यहां आते हैं. हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्ला अलैह सूफी संत थे उन्होंने 12वीं शताब्दी में अजमेर में चिश्ती परंपरा की स्थापना की और हिंदुस्तान पहुंचने के बाद भाईचारे का पैगाम दिया. जब गरीब नवाज हिंदुस्तान आए तो यहां बहुत छुआछुत थी. उस समय पानी का एक ही स्रोत आनासागर झील हुआ करती थी. मुसलमान होने की वजह से उन्हें झील से पानी लेने से मना कर दिया था. जानकार बताते हैं कि मोइनुद्दीन ने अपने मुरीद फकरूद्दीन चिश्ती से कहा जाओ जाकर आनासागर से कहो ख्वाजा मोइनुद्दीन ने बुलाया है. इसके बाद आना सागर ख्वाजा के कासे में आ गया.

 
 
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