पर्दे पर आई अन्ना हजारे की कहानी

पर्दे पर आई

फिल्म की कहानी दिल्ली के राम लीला से शुरू होती है, जहां अन्ना किसन बाबूराव हजारे ने जान लोकपाल बिल के लिए धारणा दिया था. फिर कहानी फ्लैश बैक में जाती है और स्कूल के दिनों में किसन अपनी कॉपी घर ही भूल आता है. इस पर अध्यापक उससे कॉपी लाने के लिए घर भेजता है, लेकिन रास्ते में देश भक्ति के एक जुलूस में शामिल हो जाता है. किसन में देश भक्ति तो होती है, पर पढ़ाई-लिखाई में उसका दिल नहीं लगता है. यह देख उसका मामा उसे मुंबई ले आता है और वहां वह फूल बेचने का काम करता है, लेकिन पुलिस की हफ्ता वसूली के चलते वह वहां भी ठीक नहीं पाता. फिर किसन फौज में शामिल होने जाता है, पर फिट न होने के चलते वह बाहर कर दिया जाता है. लेकिन उसमें देश भक्ति के जज़्बे को देखते हुए ऑफिसर (शरत सक्सेना) उसे फौज में शामिल तो कर लेता है और साथ ही उसे फाइनल फिटनेस में पास होने के लिए उकसाता भी है. फिर वह पास होकर सरहद पर भेज दिया जाता है. पर वहां भी उसे उस तरह से नहीं, बल्कि किसी दूसरे तरीके से देश भक्ति की चाहत होती है. कहानी में तभी एक ट्वीस्ट अन्ना रिटायर होते है और फिर किसन अपनी नौकरी की सारी कमाई गांव में मंदिर बनवाने में लगा देता है और पिछले तीन वर्षों से बारिश न होने के कारण सभी की हालत बद से बदतर होती जा रहा थी. किसन के लाख समझाने के बाद भी अन्ना की बात कोई नहीं मानता, पर वह गांव में पानी लाने की जद्दोजहद में लगा रहता है. साथ ही बीच-बीच में दिल्ली के राम लीला मैदान का प्रदर्शन भी दिखाया जाता रहा. इसी के साथ फिल्म दिलचस्प मोड़ लेते हुए आगे बढ़ती है.

 
 
Don't Miss