सपनों से जूझने की कहानी है सिटीलाइट्स

EXCLUSIVE: सपनों से जूझने की कहानी है सिटीलाइट्स

अपने बारे में क्या कहना है? मैं बंगाली परिवार से हूं लेकिन मेरी आरंभिक शिक्षा शिलांग में हुई. आगे की पढ़ाई के लिए मैं मुंबई आ गई. एचआर कॉलेज से बीकॉम. करते हुए मुझे विज्ञापन फिल्मों के ऑफर आने शुरू हो गये. उस दौ रान पढ़ाई करते हु ए मैंने ढेर सारी विज्ञापन फिल्में कर डालीं. उन्हीं दिनों मुझे फिल्मों में ऑडीशन के लिए बुलावे भी आने लगे लेकिन मुझे एक्टिंग का कोई तजुर्बा नहीं था इसलिए उस वक्त मैंने उन्हें नजरअंदाज करते हुए प्रोफेशनल थियेटर करना शुरू कर दिया. करीब डेढ़ साल बाद मैंने ऑडीशन देना शुरू किया. यह फिल्म कैसे मिली? एक दिन कास्टिंग डार्यो क्टर विनोद राउत ने मुझे इस फिल्म के लिए बुलाया. ऑडीशन के कई राउंड हुए, फिर फिल्म के डार्योक्टर हंसल मेहता ने फाइनल ऑडीशन लिया और मुझे फिल्म के लिए साइन कर लिया.

 
 
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