प्यार में पड़ गयी थी, यमराज पर पड़ी भारी

 अखंड सौभाग्य का व्रत वट सावित्री, प्यार में पड़ गयी थी, यमराज पर पड़ी भारी

भारतीय संस्कृति में प्रचलित यह व्रत पतिव्रता नारी के सर्वोत्कृष्ट आदर्श का पर्याय माना जाता है. कथानक पौराणिक कथानक के अनुसार मद्र देश के राजा अश्वपति की कोई संतान न थी. संतान की प्राप्ति के लिए उन्होंने अठारह वर्षों तक सावित्री देवी की कठोर साधना की. उनकी तपश्र्चया प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें कन्या प्राप्ति का वरदान दिया. सावित्री देवी की कृपा से जन्म लेने के कारण राजा ने अपनी परम रूपवती और विदुषी पुत्री का नाम सावित्री रखा. विवाह योग्य होने पर उन्होंने कन्या को स्वयं अपना वर तलाशने का निर्देश दिया. पिता की आज्ञानुसार सावित्री पति की तालश में निकल पड़ी. यात्रा के दौरान एक दिन उसकी भेंट साल्व देश के निर्वासित राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से हुई. औपचारिक भेंट के दौरान सावित्री सत्यवान के व्यक्तित्व और बौद्धिक ज्ञान से बेहद प्रभावित हुई और उसने मन ही मन सत्यवान का पति के रूप में वरण कर लिया और वापस घर लौट कर उसने पिता से अपना निर्णय बताया.

 
 
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